दोनों गोलार्द्ध में 30° – 35° अक्षांशों के मध्य उच्च वायुदाब पाया जाता है। इसे अश्व अक्षांश कहते हैं।
अतः उपयुक्त विकल्पों में से विकल्प (A) सही उत्तर होगा।
Note :
- भू-मध्य रेखा से उठी वायु तथा उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की वायु इन अक्षांशों में नीचे उतरकर बैठती है, जिससे इनका आयतन कम होने के कारण वायुदाब अधिक हो जाता है।
- जलयानों को इन अक्षांशों के बीच वायु शान्त रहने के कारण आगे बढ़ने में कठिनाई होती थी।
- यह उपोष्ण उच्च वायुदाब का क्षेत्र है।
- 45° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों से क्रमश: आर्कटिक तथा अंटार्कटिक वृत्तों के बीच निम्न वायु - भार की पेटियाँ पायी जाती है, जिसे उपध्रुवीय निम्न दाब पेटियाँ कहते है।
- 30° - 35° अक्षांशों के बीच जलयानों के संचालन में कठिनाई होती थी, जिस कारण से कुछ अश्वों को सागर में फेंक देते हैं, इस कारण से इन्हें अश्व अक्षांश (Horse latitude) कहा जाने लगा।
- इस भाग में पवन के नीचे उतरने के कारण उपोष्ण कटिबन्धी प्रतिचक्रवातों का आविर्भाव होता है जिनके पूर्वी एवं पश्चिमी भागों में पर्याप्त अन्तर होता है।
- 20° 30° अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर शुष्क मरुस्थल पाये जाते हैं।
- पछुवा हवायें (Westenlies) उपोष्ण उच्च वायुदाब (30° - 35°) से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब ( 60°-65°) के बीच दोनों गोलार्द्ध में चलनेवाली स्थायी पवन है।
- इस पवन की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर होती है।
- इस क्षेत्र में वाताग्र (Front) बनाता है जिसे शीतोष्ण वाताग्र कहते हैं ।