मैक्डोनॉल्ड एवार्ड एवं पूना समझौता (McDonald Award And Poona Pact)—
द्वितीय सम्मेलन की विफलता के बाद 14 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैक्डोनॉल्ड ने सांप्रदायिक निर्णय या मैक्डोनॉल्ड एवार्ड की घोषणा की। इसमें सभी अल्पसंख्यकों के लिए पृथक निर्वाचन (Separate Election) की व्यवस्था की गई।
गाँधीजी हिंदू समाज में फूट डालने की नीति से मर्माहत हो गए। इसके विरोध में उन्होंने आमरण अनशन आरंभ कर दिया। उनके बिगड़ते स्वास्थ्य से चिंतित होकर डॉ० भीमराव अंबेडकर के साथ समझौता का प्रयास किया गया। 26 सितंबर 1932 को पूना में गाँधीजी और डॉ. अंबेडकर में में पूना समझौता हुआ।
इसमें दमित वर्गों (अनुसूचित जातियों) के लिए प्रांतीय और केंद्रीय विधायिकाओं में स्थान आरक्षित कर दिए गए। मतदान सामान्य निर्वाचन क्षेत्र से ही होना था। गाँधीजी ने अपना अनशन तोड़ दिया और हरिजनोद्धार कार्यों में लग गए। उन्होंने हरिजन पत्रिका का प्रकाशन भी किया।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के बाद भारत का राजनीतिक वातावरण और अधिक अशांत हो गया। सरकार गाँधी-इरविन समझौते का उल्लंघन कर अपना दमनचक्र पुनः चलाने लगी। विरोध में गाँधीजी ने जनवरी 1932 में पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया।
आंदोलन आरंभ करने के पहले ही गाँधीजी सहित सभी प्रमुख काँग्रेसी नेता गिरफ्तार कर लिए गए। एक बार पुन: काँग्रेस गैरकानूनी संस्था घोषित कर दी गई। दमनचक्र तेज कर दिया गया। इसी माहौल में तृतीय गोलमेज सम्मेलन (नवंबर 1932-दिसंबर 1932) हुआ ।
काँग्रेस ने इसका बहिष्कार किया। सम्मेलन विफल हो गया। गाँधीजी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया। गाँधीजी के निर्णय की पुन: आलोचना हुई, पूर्ण स्वराज की प्राप्ति का प्रयास विफल हो गया, परंतु इसी विफलता ने गाँधीजी को पुनः नए अस्त्रों के साथ स्वाधीनता संग्राम में उतरने को उत्प्रेरित किया। इस अंतिम चरण भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में गाँधीजी विजयी हुए।