स्वराज दल का पतन (Fall Of Swaraj Dal) : 1925 में चित्तरंजन दास की मृत्यु के बाद स्वराज दल का प्रभाव घट गया। इसके अनेक नेताओं ने सरकार का साथ देकर सरकारी पद स्वीकार कर लिए।
केलकर और पुपूल जयकर जैसे नेताओं ने सरकार से सहयोग का मार्ग चुना। इसलिए, स्वराजियों की छवि धूमिल हो गई। हिंदू महासभा से घनिष्ठता से भी इसकी प्रतिष्ठा घट गई।
1926 के चुनाव में इसे मद्रास के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं अच्छी सफलता नहीं मिली। इसी वर्ष काँग्रेस के अनुरोध पर स्वराजी केंद्रीय विधानपरिषद से बाहर आने को तैयार हो गए।
स्वराजियों ने अपनी अड़ंगा डालने की नीति से कुछ समय तक सरकार का चलना कठिन बना दिया। जिस समय गाँधीजी राजनीतिक निर्वासन में थे, उस समय स्वराजियों ने ही राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व सँभाला। 1926 तक इसका प्रभाव समाप्तप्राय हो गया।