इंग्लैंड में कारखानेदारी प्रथा (Factory System In England) :
औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप इंगलैंड में कारखानेदारी प्रथा (फैक्टरी व्यवस्था) का उदय और विकास हुआ।
18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में पहले कारखाने खुले, लेकिन उनका विकास इस सदी के अंतिम चरण में हुआ। 19वीं सदी के आरंभ तक इंगलैंड में विशाल कारखाने खुल गए।
इन कारखानों ने इंगलैंड के भूदृश्य को परिवर्तित कर दिया। कपास उद्योग से इन कारखानों की शुरुआत हुई। 18वीं शताब्दी के अंत तक कपास के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। कपास के आयात में भी भारी बढ़ोतरी हुई। इसका कारण सूती वस्त्र उत्पादन में प्रगति थी।
तकनीक के प्रयोग और मशीनों के व्यवहार से उत्पादन और कार्यकुशलता बढ़ी। कपास एवं उनके रेशों की कताई या कार्डिंग, उन्हें ऐंठने और लपेटने की तकनीक खोजी गई।
प्रतिमजदूर उत्पादन भी बढ़ गया। वाटरफ्रेम और पावरलूम के आविष्कार से कपड़े की कताई-बुनाई का हाथ से काम बंद हो गया। अब सारा काम मशीन से किया जाने लगा। साथ ही, उत्पादन के स्वरूप में भी परिवर्तन आया।
पहले कपड़ा गाँवों घरों में बनाया जाता था। अब नई मशीनों के द्वारा यह काम कारखानों में किया जाने लगा। वस्त्र उत्पादन की सारी प्रक्रिया कारखानों में एक छत के नीचे होने लगी। इसलिए, इनपर उत्पादक का नियंत्रण स्थापित हो गया। वह एक ही जगह पर रहकर मजदूरों पर नियंत्रण रख सकता था, वस्त्र की गुणवत्ता एवं उत्पादन प्रक्रिया पर निगरानी रख सकता था।
पहले दूर-दूर के गाँवों घरों में फैले उत्पादन पर नियंत्रण बनाए रखना संभव नहीं था, परंतु कारखानों की स्थापना से यह कार्य सहज हो गया। कारखानेदारी प्रथा के विकास के परिणामस्वरूप इंगलैंड में उद्योग एवं व्यापार के नए केंद्र अस्तित्व में आए। लिवरपूल में स्थित लंकाशायर सूती वस्त्र उद्योग का केंद्र बन गया।
सूती वस्त्र का दूसरा महत्त्वपूर्ण केंद्र मैनचेस्टर था। 1805 के बाद न्यू साउथ वेल्स ऊन उत्पादन का केंद्र बना जहाँ बड़े भेड़ फार्म स्थापित किए गए। ब्रिटेन में रेशम उद्योग और सन उद्योग का भी विकास हुआ।