महान गणितज्ञ आर्यभट्ट (Aryabhatta) ने 5 वीं सदी में π (पाई) का मान 3.1416 निर्धारित किया था, जो आज भी मान्य है।
चूँकि हम जानते हैं, कि वृत्त की परिधि तथा व्यास की लंबाइयों का अनुपात सदैव नियत (Constant) होता है। यह नियतांक अपरिमेय संख्या है, जिसे π से सूचित किया जाता है।
इसका दशमलव निरूपण असांत (Non-terminating) तथा अनावर्ती (Non-repeating) होता है।
π का मान दशमलव के कुछ स्थानों तक यानी 0 = 3.14159265 होता है, फिर भी परिमेय संख्या 22/7 का अधिकतम मान (Approximate value) π माना जाता है, अर्थात् यह स्पष्ट रूप से समझना चाहिए कि π ≠ 22/7
अतः π का अधिकतम मान 355/113 होता है, जिसका दशमलव मान 3.1415929 होता है।
यूनान निवासी आर्किमेडीज (Archimedes) ही वह प्रथम व्यक्ति था, जिसने π के दशमलव प्रसार में अंकों को अभिकलित किया था। उसने यह स्पष्ट कर दिया कि 3.140845 < π < 3.142857
एक महान गणितज्ञ और खगोलविद् आर्यभट्ट (476-550 ई.) ने चार दशमलव स्थानों तक शुद्ध का मान (3.1416) ज्ञात किया था।
आज उच्च चाल के कम्प्यूटरों (Computers) और उन्नत कलन-विधियों (Algorithms) का प्रयोग करके 1.24 ट्रिलियन से भी अधिक दशमलव स्थानों तक π का मान अभिकलित किया जा चुका है।