मंगोल आक्रमण का विश्व इतिहास पर क्या प्रभाव पड़ा? Mangol Aakraman Ka Vishwa Itihaas Par Kya Prabhav Pada?
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मंगोल आक्रमण का विश्व इतिहास पर क्या प्रभाव पड़ा? Mangol Aakraman Ka Vishwa Itihaas Par Kya Prabhav Pada?

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मंगोल आक्रमण का विश्व इतिहास पर प्रभाव (Impact Of Mongol Invasion On World History) :

मंगोल शासक चंगेज खाँ मंगोल आक्रमण का विश्व इतिहास पर प्रभावने एक सशक्त मंगोल साम्राज्य की नींव डाली। मंगोल यद्यपि बर्बर व क्रूर घुमन्तू जाति थी मगर इस पर नियन्त्रण हेतु चंगेज खाँ ने इन्हें अपने यास्सा से बाँधा। 

यह चंगेज खाँ का ही प्रभाव था कि मंगोलों ने विश्व के सामने झूठ न बोलने व चोरी न करने का आदर्श प्रस्तुत किया। खानाबदोश जातियों में इस प्रकार की नैतिकता का प्रतिस्थापन निश्चित रूप से प्रशंसनीय कार्य था। 

अपने यास्सा में चंगेज खाँ ने सम्राट के निर्वाचन हेतु कुरिलताई (महापरिषद्) के निर्णय को मानने का मंगोलों को आदेश दिया। निश्चित रूप से इस प्रकार विश्व के समक्ष जनतान्त्रिक ढंग से सम्राट के चुनाव का आदर्श प्रस्तुत किया गया। कुबलई खान के समय तक चीन से लेकर पश्चिम के यूरोप तक मंगोल साम्राज्य का विस्तार हुआ। 

अतः चीन, मध्य एशिया, तुर्किस्तान, इरान एवं यूरोपीय देशों से मंगोलों का निकट सम्पर्क स्थापित हुआ। इससे समस्त विश्व के मध्य नवीन सांस्कृतिक सम्बन्ध विकसित हुए। 

मंगोलों के राज्य में यातायात व्यवस्था अत्यन्त सुरक्षित थी। इसीलिये पूर्व से लेकर पश्चिम तक व्यापारिक काफिले अपने माल के साथ निडर होकर आते-जाते थे। इससे व्यापार को बढ़ावा मिला।

मंगोल कगान मंगू खान यद्यपि एक विशाल मंगोल साम्राज्य का स्वामी बन गया था मगर उसने अपनी खानबदोशी परम्परा के अस्तित्व को कायम रखा। कराकोरम में उसका दरबार विशाल तम्बुओं में लगता था। उसके दरबार में देश-विदेश के व्यापारी, राजदूत, कलाकार, विद्वान एवं ज्योतिषी आदि एकत्रित होते थे। एक तरह से उसके दरबार को हम विभिन्न संस्कृतियों के समन्वय के केन्द्र के रूप में देख सकते हैं। 

भारतीय मुगल महान सम्राट अकबर की भांति मंगू खाँ सभी धर्मों की बातें सुनता था। ईसाईयों से उसने पोप. की बातें भी सुनीं। ईसाई, मुसलमान, बौद्ध आदि धर्म प्रचारक उस पर अपना प्रभाव डालने की कोशिश करते थे ताकि वह उनका एक धर्म अपना ले। मंगू खाँ की मृत्यु के पश्चात् इसी परम्परा का निर्वाह कुबलई खाँ ने भी किया मगर अब मंगोल संस्कृति का केन्द्र कराकोरम से हटकर पीकिंग पहुँच गया। 

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