भारत में चावल के उत्पादन एवं वितरण (Production and Distribution of Rice in India) —
चावल (Rice) : चावल भारत की प्रमुख फसल है, तथा देश के अधिकांश लोगों का प्रमुख भोजन है।
विश्व के चावल उपजाने वाले देशों में भारत का द्वितीय स्थान है। बर्मा के भारत से अलग होने के पूर्व भारत सम्पूर्ण विश्व का प्रायः 40 प्रतिशत भाग उत्पन्न करता था।
साथ ही, यह विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश (Exporter Country) भी था।
किन्तु, आजकल विशेषत: देश विभाजन के पश्चात् तो हमें प्रतिवर्ष बहुत अधिक मात्रा में बर्मा आदि देशों से चावल का आयात करना पड़ता है।
चावल की खेती के लिए उर्वर भूमि (Fertile Land), उष्ण जलवायु (Climate) तथा अधिक वर्षा (Rain) की आवश्यकता होती है।
भारत में इसकी खेती मुख्यतः आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, आसाम तथा मध्य प्रदेश में होती है।
देश के भिन्न भिन्न भागों में स्थानीय दशाओं के अनुसार विभिन्न प्रकार का चावल उपजाया जाता है, किन्तु अधिकांश राज्यों में जून-जुलाई में फसल बो दी जाती है, तथा दिसम्बर तक तैयार हो जाता है।
भारत में सम्पूर्ण कृषि की जाने वाली भूमि के लगभग 22 से 24 प्रतिशत भाग भूमि में चावल की खेती होती है।
किन्तु अभी भी भारत चावल के दृष्टिकोण से आत्मनिर्भर राष्ट्र नहीं हो पाया है। इसका प्रमुख कारण यहाँ चावल की प्रति एकड़ उपज का कम होना है।
भारत चावल की प्रति एकड़ औसत उपज 616 किलोग्राम है, जो अन्य देशों की तुलना में बहुत ही कम है।
यह औसत उत्पादन इटली का केवल एक चौथाई भाग तथा जापान एवं मिस्र का एक तिहाई भाग है।
चावल की प्रति एकड़ उपज में वृद्धि के लिए सरकार द्वारा जापानी तरीके से धान की कृषि को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
इस तरीके से धान के प्रति एकड़ औसत केवल 19.9 मन प्रति एकड़ हुई है।
उपज बढ़ाने में अंतर्राष्ट्रीय चावल आयोग (International Rice Commission) से भी सहायता प्राप्त हुई है।
आयोग ने अच्छे बीज, अच्छी खाद तथा पौधों से बचाने के संबंध में समुचित परामर्श दिया है।
देश में चावल की उपज से अनुमानतः 10 से 13 प्रतिशत तक अधिक चावल की खपत होती है।
इसी कमी पूर्ति के लिए प्रतिवर्ष विदेशों से चावल का आयात करना पड़ता है।
चावल के उत्पादन में वृद्धि एवं उपभोग की आदतों में परिवर्तन के द्वारा इस कमी को दूर किया जा सकता है।