कुम्हरार पुरातात्विक स्थल मौर्य राजप्रसाद से संबद्ध है । कुम्हरार का लकड़ी का राजप्रसाद विशाल और भव्य था । "कुम्हरार" पटना में स्थित है, जहाँ मौर्य कालीन स्थापत्य कला का सबसे पहला उदाहरण चन्द्रगुप्त के राजप्रसाद का अवशेष मिला है।
राजप्रसाद के सभा-भवन के जो अवशेष प्राप्त हुए हैं, उससे था। पता चलता है, कि यह सभा भवन 80 खंभों वाला हॉल इस सभा-भवन का फर्श और छत लकड़ी के थे। भवन की लम्बाई 140 फीट तथा चौड़ाई 120 फीट थी । भवन के स्तम्भ बलुआ पत्थर के बने हुए थे और उनमें चमकदार पॉलिश की गई थी।
अशोक द्वारा पाषाण स्तंभ लगाया गया । मौर्य राजप्रसाद की विशालता और भव्यता का चित्रण विदेशी यात्रियों और विद्वानों ने भी किया है।
चन्द्रगुप्त-II के समय आये हुए चीनी यात्री फाहियान ने राजप्रसाद को देखकर आश्चर्यचकित होकर कहा कि “इस भवन का निर्माण देवदूत या राक्षस द्वारा बनाया गया होगा (मानव द्वारा नहीं) ।
तक्षशिला भारत का प्राचीनतम विश्वविद्यालय है।
कौशाम्बी वत्स महाजनपद की राजधानी थी ।
हस्तिनापुर से ईंट निर्मित भव्य महल का प्रमाण मिला है।