अरीय (Radial) गुंबद जैसी संरचना वाले जल निकासी पैटर्न की निरूपित करता है।
नदियों के अपवाह प्रतिरूप के प्रकार निम्न है—
- जालीनुमा प्रतिरूप ( Trellis Patterns) : इसका विकास प्रधान अनुवर्ती नदी तथा उसकी सहायक परवर्ती नवानुवर्ती और प्रत्यानुवर्ती नदियों के प्रवाह जाल द्वारा होता है।
- आयताकार प्रतिरूप : आयताकार प्रतिरूप में सहायक नदियाँ अपनी मुख्य नदी से समकोण पर मिलती है, किन्तु इसमें नदियाँ के मिलने के स्थान का कोण चट्टान की संधियों के द्वारा निर्धारित होता है।
- अपकेन्द्रीय या अरीय प्रतिरूप : जब नदियाँ किसी उच्च स्थान से निकलकर चारों तरफ प्रवाहित होती है तो उपकेन्द्रीय या अरीय प्रतिरूप बनता है।
- वृक्षाकार प्रतिरूप : वृक्षाकार प्रतिरूप का विकास प्रमुख रूप से ग्रेनाइट शैल वाले चौड़े तथा सपाट विस्तृत भाग पर होता है।
- वलयकार प्रतिरूप : वलयकार प्रतिरूप में नदियाँ प्रौढ़ वधर्षित गुम्बदीय पर्वतों से निकलकर उनकी परिक्रमा करती हुई प्रवाहित होती है।
- अभिकेन्द्रीय या केन्द्रोमुखी प्रतिरूप : इस प्रतिरूप में नदियाँ चारों ओर के ऊँचे स्थान से निकलकर मध्य की नीची भूमि, झील या आंतरिक सागर में पहुँचती है।
- समानांतर प्रतिरूप : इस प्रतिरूप के अंतर्गत कई नदियाँ एक-दूसरे के समानांतर बहती हुई प्रादेशिक ढाल का अनुसरण करती है।