ऋग्वेद के पुरुष सुक्त तथा महाभारत के शांति पर्व से जानकारी मिलती है ब्रह्मा (विराट पुरुष) के मुख से ब्राह्मण, बाहु से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य तथा पैरों से शूद्र वर्ण की उत्पत्ति हुई।
प्रारम्भ में चातुर्वण्य व्यवस्था का आधार कर्म था। ब्राह्मण का कार्य कर्मकाण्ड सम्पन्न कराना था। राजा क्षत्रिय होता था, जिसका कार्य रक्षा करना था।
वैश्य का कार्य व्यापार था। इन तीनों वर्णों को सम्मिलित रूप से द्विज कहा जाता था। शूद्र वर्ण का कार्य इन तीनों वर्णों की सेवा करना था।
कालान्तर में यह व्यवस्था कर्म के स्थान पर जन्म पर आधारित हो गयी।