उत्तर – वैदिक काल में यद्यपि राजा सर्वोच्च अधिकारी और शक्ति सम्पन्न होता था, किन्तु वह निरंकुश व स्वेच्छाचारी नहीं हो सकता था, उस पर दो जनतांत्रिक संस्थाओं 'सभा' और ‘समिति' का नियंत्रण रहता था। सभा सम्पूर्ण जनता के प्रतिनिधियों की संस्था थी तथा समिति वयोवृद्ध तथा उच्च कुल व्यक्तियों की संस्था थी। जिमर के अनुसार समिति सम्पूर्ण जाति की केन्द्रीय सभा और सभा गाँवों की प्रतिनिधि संस्था थी। ऐसा प्रतीत होता है कि समिति समस्त जन या विश की संस्था थी। जिसमें राजा का चुनाव होता था। सभा समिति से छोटी होती थी जिसमें समाज के वयोवृद्ध व प्रतिष्ठित व्यक्ति होते थे। उत्तर वैदिक काल में राजाओं की शक्तियों में वृद्धि हो गई थी तथा इन संस्थाओं का महत्त्व कम होने लगा था।