मध्यकाल में कृषि संरचना में जमींदारों को जो स्थान प्राप्त था, वह ग्रामीण समाज में उसकी श्रेष्ठता स्थापित करता है।
मुगलकाल में जमींदार शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम इलाके के प्रधान के लिए किया जाता था।
वास्तव में जमींदार भूमि के उत्पादन की प्रक्रिया से जुड़े हुये थे और भू-राजस्व पर उनका दावा आनुवंशिक था।
मुगल काल में जमींदार वर्ग का जन्म नहीं हुआ बल्कि यह पहले से ही कायम था। हालांकि सम्राट को किसी गाँव में जमींदार रखने या हटाने का पूर्ण अधिकार था किन्तु ऐसा वे विशेष परिस्थिति में ही कर सकते थे।
मध्यकालीन शासकों ने जमींदारों के अधिकारों की वैधता प्रदान की किन्तु वे सरकार के प्रतिनिधि के रूप में राजस्व वसूली का काम करते थे।
इसके बदले में उन्हें राजस्व का कुछ हिस्सा मिलता था। अधिकांश जमींदार अपनी निजी सेना रखते थे जिनकी सहायता से वे राजस्व की वसूली करते थे।