किसी भी सिलसिले में पीर की मृत्यु के उपरांत उसकी दरगाह उनके मुरीदों के लिए भक्ति का स्थान बन जाता था।
फारसी भाषा में दरगाह का अर्थ दरबार (levee) है, इस पीर की दरगाह पर जियारत के लिए जाने की विशेष तौर पर उनकी बरसी के अवसर पर परंपरा आरंभ हो गई।इसी परंपरा को उर्स कहा जाने लगा।
उर्स के अवसर पर दरगाह के आस-पास मेला लगता है, दरगाह पर जाकर मांगी गयी लोगों की मन्नतें पूर्ण होती है, कहा जाता है कि अकबर ने फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह पर मन्नत मांगी थी।
अकबर को जब पुत्र प्राप्त हुआ तो पुत्र का नाम शेख के नाम पर ही सलीम जहाँगीर (Saleem Jahangir) रखा।