भारत में भक्ति परम्परा की शुरुआत दक्षिण भारत से अलवार और नयनार संतों के माध्यम से हुई थी।
दक्षिण भारत में अलवार और नयनार संतों ने घूम-फिर कर धर्म (Religion) का प्रचार किया।
अलवार वैष्णव और नयनार शैव मत के अनुयायी थे, और दोनों ही मत के संतों ने जात-पात और अस्पृश्यता का विरोध कर समाज में सामंजस्य (Adjustment) लाने का प्रयत्न किया।
अलवार संतों का कहना था, कि विष्णु भगवान (Lord Vishnu) की कृपा सभी वर्ण के भक्तों पर रहती है इसके लिए ब्राह्मण होना जरूरी नहीं।
एक तरह इस सम्प्रदाय के संतों ने सीधे-सीधे दक्षिण भारत (South India) में ब्राह्मणवाद को चुनौती दिया था।
अलवार संतों की संख्या 12 तथा नयनार संतों की संख्या 63 बताई जाती है। इन संतों में कुछ महिलाएँ भी शामिल थी।