इब्नबतुता (Ibnebatuta) ने अपने यात्रा वृतांत दास प्रथा का जिक्र किया है। उसने लिखा है कि बाजार में जानवरों की तरह दासों की खरीद-बिक्री होती थी।
दास उपहार स्वरूप भी दिये जाते थे। स्वयं इब्नबतुता ने मुल्तान के गवर्नर को दास और घोड़ा भेंटस्वरूप प्रदान किये थे। दासों की अलग-अलग श्रेणियाँ थीं।
कुछ दास सुल्तान की खास सेवा के लिए रखे जाते थे, कुछ गायन और संगीत में निपुण होते थे तो कुछ गुप्तचरी के कार्य में दक्ष होते थे। यह अमानवीय प्रथा विश्व के कई देशों में प्रचलित थी।