भारतीय नारी पर निबंध | Bhartiya Nari Par Nibandh
विश्व में भारतीय नारी (Indian Women) की विशिष्ट पहचान है। यह भारतीय संस्कृति के रंग में पूर्णतः रँगी होती है। यह ममता की मूर्ति और करुणा की देवी होती है।
इसके चरित्र में धार्मिक संस्कार कूट-कूटकर भरा होता है। गार्हस्थ्य जीवन की मर्यादाओं के अनुपालन के प्रति इसकी निष्ठा किसे अभिभूत नहीं कर देती! परिवार के प्रति इसका समर्पण और सेवाभाव अद्भुत होता है।
अनेक कष्ट सहकर भी यह अपने परिवार के सदस्यों को प्रसन्न रखना चाहती है। त्याग, निस्स्वार्थ सेवाभाव, समर्पण, उत्तरदायित्व-बोध, नैतिकता, सहिष्णुता, धैर्य, ममता, करुणा, दया आदि इसके चरित्र के उज्ज्वल पक्ष हैं।
वैदिक युग (Vaidik Yug) में भारतीय नारी श्रद्धा और सम्मान की पात्र थी। तत्कालीन मातृसत्तात्मक प्रथा में माता या गृहस्वामिनी की ही सत्ता सर्वोपरि थी।
उपनिषद् युग के अंतिम चरण में समाज में पितृसत्तात्मक प्रथा का उदय होने लगा था। पौराणिक काल में समाज पितृसत्तात्मक हो गया।
पुरुषों का वर्चस्व बढ़ा और स्त्रियाँ उनकी इच्छाओं के अधीन हो गईं। मध्यकाल में भारतीय नारी पुरुषों की भोग्या हुई और उनकी इच्छाओं के अधीन दासी बनकर रह गई।
मुगलकाल में भारतीय नारी का घोर शोषण हुआ। उसकी अपनी इच्छा का कोई महत्त्व नहीं रहा। घर की दीवारों में वह कैद हो गई। ‘असूर्यपश्या' उसकी (नारी की) पर्याय बनी।
धार्मिक रूढ़ियों ने उसकी स्वतंत्रता छीन ली। सती प्रथा की क्रूरता से वह चीत्कार कर उठी। यौवन में ही विधवा बनकर वह आरोपित सामाजिक मर्यादाओं के पालन में भीतर से टूट गई।
आधुनिक काल में, अर्थात बीसवीं शताब्दी के मध्य में, भारतीय नारी को अपनी बंद खिड़कियों को खोलने का अवसर मिला।
भारत की आजादी के साथ भारतीय नारी में अपने अस्तित्व की रक्षा के प्रति बौद्धिक जागरूकता का सूत्रपात हुआ।
वर्तमान काल में शिक्षा (Education) के प्रसार के चलते भारतीय नारी की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में परिवर्तन आया है।
वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही है।उसने पुरुषों के अनपेक्षित वर्चस्व को चुनौती दी है।
आज भारत की नारी मध्यकालीन भारत (Medieval India) की नारी से सर्वथा भिन्न है। आज की भारतीय नारी अबला नहीं है।
वह 'आँचल में है दूध और आँखों में पानी की दयनीय स्थिति से बहुत आगे निकलकर भारत के नवनिर्माण में अपना अपूर्व योगदान कर रही है।
जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का वास होता है— पुरुषों - द्वारा गढ़े गए इस छल-छंद को आज की भारतीय नारी अच्छी तरह समझने लगी है।
वह सामाजिक एवं धार्मिक रूढ़ मूल्यों को तोड़ने के लिए व्याकुल है। भौतिक समृद्धि की चकाचौंध में नैतिकता अदृश्य हो गई है।
वर्तमान समय में भारत में बढ़ती बलात्कार की घटनाओं के कारण भारतीय नारी असुरक्षित-सी हो गई है।
समाज, सरकार और भारत के प्रत्येक नागरिक का यह नैतिक दायित्व है कि ये अपने-अपने स्तर पर इस कलंक को मिटाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करें।