हमारे पड़ोसी पर निबंध। Hamare Padosi Par Nibandh
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हमारे पड़ोसी पर निबंध। Hamare Padosi Par Nibandh Or Essay on Our Neighbour in Hindi. Or मेरे पड़ोसी पर निबंध।

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हमारे पड़ोसी पर निबंध | Hamare Padosi Par Nibandh

किसी के घर के पास के घर को पड़ोस या प्रतिवेश कहते हैं तथा उस घर में रहनेवाले को पड़ोसी कहते हैं। संस्कृत के प्रतिवेशी शब्द का ही तद्भव रूप पड़ोसी है।

पड़ोसी जाने-अनजाने एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। भाग्यवश अच्छे पड़ोसी मिल गए, तो जीवन शांतिपूर्वक कट जाता है। बुरे पड़ोसी जीवन को नरक बना देते हैं।

संपन्न पड़ोसी (Sampann Padosi)

कुछ पड़ोसी संपन्न होते हैं। संपन्न पड़ोसी का सोच-संस्कार विपन्न पड़ोसी से कुछ अलग होता है। संपन्न पड़ोसी के संस्कार उनकी संपन्नता से शासित होते हैं।

संपन्न पड़ोसी अभिजात कुलोत्पन्न हो, यह आवश्यक नहीं, वह जैसे-तैसे कमाएं धन से समाज में संपन्न वर्ग में परिगणित हो सकता है।

संपन्नता के साथ यदि उसमें चारित्रिक उज्ज्वलता हो, तब तो ठीक है; अन्यथा, वह किसी गरीब पड़ोसी के लिए अभिशाप भी बन सकता है।

मैं तो सोचती हूँ कि संपन्नता केवल सम्पत्ति से ही नहीं जुड़ी होती, वह मानवीय गुणों से भी जुड़ी होती है।

जिस पड़ोसी में धन की संपन्नता के साथ चरित्र की भी संपन्नता हो, वह उपकारक पड़ोसी होता है।

वह पड़ोसी के हर सुख-दुःख में शामिल होता है। उसमें झूठा दर्प नहीं होता।

मैं इस अर्थ में अतिशय भाग्यवान हूँ कि मेरे पड़ोसी प्रोफेसर साहब अपनी अपूर्व विद्वत्ता के बाद भी अपनी शालीनता एवं उदारता से मुझे प्रभावित करते हैं।

समाज में उनका बहुत आदर है। मैंने जब भी उनसे सहायता माँगी है, उन्होंने मुझे निराश नहीं किया है। वहीं ठेकेदार साहब अपनी ऐंठ के लिए पूरी कॉलनी में विख्यात हैं।

उनकी ऐंठ ने ऐसी दीवार खड़ी कर दी है कि उसके भीतर किसी का प्रवेश सर्वथा निषिद्ध है।

वे अपने द्वारा खड़ी की गई दीवार के भीतर कुंठित भाव से जीने को शापित हैं।

गरीब पड़ोसी (Garib Padosi)

कुछ पड़ोसी गरीब होते हैं। वे दिन-रात अपनी दैनिक आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संघर्षरत रहते हैं।

वे निस्पृह भाव से अपने पड़ोसी धर्म का पालन करते हैं। भले ही वे धनी न हों, पर सदाशयता का धन उन्हें ‘धनियों’ से भी ज्यादा धनी बनाता है।

कौन कहता है कि धर्मनाथ सहनी गरीब हैं! उनके निश्छल मानवीय चरित्र ने कॉलनी में उन्हें सम्माननीय बनाया है।

गरीबी अभिशाप तो है, पर उत्थान की भाग्यरेखा यहीं से ऊपर उठती है। मेरे पड़ोस में धनी और गरीब दोनों रहते हैं।

मेरे लिए दोनों पड़ोसी हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे संस्कार का सामंजस्य भाव इनमें कोई अंतर नहीं करेगा।

हमारा कर्तव्य (Hamara Kartavya)

पड़ोसियों के प्रति प्रेम और सहयोग की भावना रखना हमारा कर्तव्य होना चाहिए। पड़ोस में कुछ होता है, तो सबसे पहले पड़ोसी ही मदद को दौड़ते हैं।

हमारे दूर के संबंधी तो बाद में आते हैं, इस पर अवश्य विचार करना चाहिए। पड़ोसी भले ही नहीं बदले जा सकते, पर अपना विचार तो बदला जा सकता है!

पड़ोसियों के प्रति जलन, ईर्ष्या और स्पर्धा का भाव न रखकर प्रेम, सहयोग, उपकार और सेवा का भाव रखना चाहिए।

उपसंहार (Conclusion)

अच्छे पड़ोसी दुर्लभ हैं। सौभाग्य से ही अच्छे पड़ोसी मिल जाते हैं। बुरे पड़ोसी को हमारी उन्नति से ईर्ष्या होती है।

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हमारे पड़ोसी पर निबंध | Hamare Padosi Par Nibandh

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह ओकला जीवन नहीं बिता सकता। सामाजिक जीवन में सबसे पहले अच्छे पड़ोसी की जरूरत होती है।

दिन हो या रात, मुसीबत आने पर मदद माँगने के लिए सबसे पहले हम पड़ोसी के पास ही पहुँचते हैं, क्योंकि वही हमारे समीप होता है।

इसलिए हम कह सकते हैं, कि सच्चा स्वजन तो पड़ोसी ही होता है।

वही हमें सुख-दुःख में मदद करता है। एक अच्छा पड़ोसी सौभाग्य से प्राप्त होता है, अगर बुरा पड़ोसी मिल जाए तो जीना दूभर हो जाता है। हर वक्त जान मुसीबत में पड़ी रहती है ।

सम्पन्न पड़ोसी

हमारे तीन पड़ोसी हैं। एक हैं : श्रीमान् लालबिहारी जी।

वे बड़े घमण्डी किस्म के हैं, इसलिए किसी से बात करना वे अपने शान के खिलाफ समझते हैं। न जाने वे अपने आप को क्या समझते हैं?

उनके तीन बच्चे हैं : एक लड़का और दो लड़कियाँ; पर मजाल है, वे बाहर आकर किसी से बात कर जाएँ।

बच्चों के साथ खेलना तक उनके लिए वर्जित है, परन्तु उनकी पत्नी कभी-कभी मिलने पर मुस्कुरा देती है, पर बोलती कुछ नहीं। ऐसे पड़ोसी तो हुए या न हुए, बराबर है।

गरीब पड़ोसी

हमारे दूसरे पड़ोसी हैं : चमनलाल सेठ।

वे बड़ी ही सीधे-साधे और मिलनसार आदमी हैं। उनकी पत्नी भी बड़ी शुशील महिला हैं।

उनके दो बच्चे हैं : एक लड़का और एक लड़की। वे दोनों भी माता-पिता की तरह हम से भाई-बहन की तरह मिल जुलकर रहते हैं।

उनसे हमारा कुछ भी काम पड़े तो 'ना' नहीं कहते। उनके दवाईयों की अपनी दुकान है। हम उन्हीं के यहाँ से दवाईयाँ खरीदते हैं, क्योंकि ईमानदार होने के कारण कभी नकली दवाईयाँ नहीं बेचते।

वे सभी से स्नेहपूर्ण व्यवहार करते हैं। इन सभी गुणों के कारण हम उनका आदर करते हैं।

हमारा कर्तव्य

हमारे तीसरे पड़ोसी हैं : श्रीमान श्रीकान्त राव जी।

वे बड़े अजीब आदमी हैं। आज कल के जमाने में भी उन्होंने भारत की जनसंख्या बढ़ने में काफी योग दिया है।

उनके पाँच लड़के और तीन लड़कियाँ हैं। उनका घर हमेशा कुरुक्षेत्र बना रहता है। उनके बच्चे भी बड़े शरारती और असभ्य हैं। उन्हें किसी बात का ख्याल नहीं है।

वे बड़े-छोटे को बिना देखे हर एक को मुँहतोड़ जवाब देते हैं। उनके यहाँ रेडियो या टीवी इतनी जोर से बजाया जाता है, कि पड़ोसियों के नाक में दम आ जाता है।

अगर कोई कुछ कहे तो उनकी पत्नी गालियाँ देने लगती हैं। भगवान् सभी को ऐसे पड़ोसियों से बचाए।

उपसंहार

इस प्रकार हमारे पड़ोसी रंग-बिरंगे हैं। सबका अपना-अपना राग है। इस पर भी सभी के बीच स्नेह का बंधन है।

सभी त्योहारों में हम एक-दूसरे से प्रेमपूर्वक मिलते हैं, जैसे हम सभी एक ही परिवार के सदस्य हों। हम लोगों पर ऊँच-नीच तथा प्रांतीयता का विष नहीं चढ़ता।

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