पृथ्वी एक विशाल पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) है। यहाँ पर जैविक तथा अजैविक घटक समान रूप से एक-दूसरे से अंतर्क्रिया करते हैं, जिसके कारण इस पारिस्थितिक तंत्र में संरचनात्मक एवं क्रियात्मक परिवर्तन होते हैं।
मानवीय क्रियाकलापों एवं उद्योगों के अपशिष्ट उत्पादों से मुक्त द्रव्य एवं ऊर्जा पर्यावरण को प्रदूषित कर देते हैं तथा परिस्थितिकीय असंतुलन पैदा कर देते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य रूप जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण इत्यादि है। इस प्रकार के पारिस्थितिकीय असंतुलन को प्रभावित करने वाले दो मुख्य कारक हैं।
वृक्षों की कटाई तथा जनसंख्या की तीव्र वृद्धि। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के कारण वायुमंडल में ऑक्सीजन की कमी हो रही है, वर्षा की मात्रा कम होती जा रही है तथा वातावरण में धूलकण एवं अन्य प्रदूषक बढ़ रहे हैं।
जनसंख्या की वृद्धि से घरेलू अपशिष्ट की मात्रा बढ़ रही है, अधिक अनाज उत्पादन के लिए खेतों में रासायनिक खाद भूमि प्रदूषण फैला रहे हैं तथा अधिवास और अन्य भौतिक संरचना के विस्तार के कारण वन-क्षेत्र कम होते जा रहे हैं। ये सभी पारिस्थितिकीय असंतुलन पैदा कर रहे हैं।