भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के समय विश्व दो प्रतिद्वन्द्वी गुटों में विभक्त था। दोनों के बीच शीतयुद्ध (Cold World) जारी था।
दोनों ही गुट सैनिक संगठनों को बढ़ावा दे रहे थे। विश्व युद्ध की स्थिति बनी हुई थी।
भारत के समक्ष दो ही विकल्प थे कि या तो किसी एक गुट में शामिल होकर दूसरे की दुश्मनी मोल ले या दोनों ही गुटों के प्रति निरपेक्षता की स्थिति बनायें रखते हुए स्वतंत्र विदेश नीति का अवलम्बन करे।
भारत ने दूसरी नीति को अपनाया, जो संप्रभुता संपन्न राष्ट्र के अनुकूल था। गुट निरपेक्षता का अर्थ विश्व राजनीति से तटस्थता नहीं था।
बल्कि स्वतंत्र विदेश नीति को अपनाना था। भारत की गुट निरपेक्षता की नीति तृतीय विश्व के देशों के लिए आंदोलन बन गई।