देश के जनप्रतिनिधि अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगे हुए हैं। उनका समय अपनी धोती सँभालने में ही व्यतीत हो जाता है।
वे देश की अर्थव्यवस्था को सुधार देंगे, बेरोजगारी को दूर कर देंगे, भ्रष्टाचार को मिटा देंगे आदि ऐसी कोरी कल्पना में लगे रहते हैं।
उन्हें अपनी कुर्सी की चिन्ता रहती है, जनता या देश की नहीं। देश की स्थिति सुधरे या नहीं अपनी स्थिति जरूर सुधर जानी चाहिए।