समुद्रगुप्त के बाद उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय सिंहासन पर बैठा। उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण किया। वह एक बहुत बड़ा विजेता था।
उसने गुप्त साम्राज्य को सुदृढ़ बनाया और उसमें मालवा गुजरात और काठियावाड़ शामिल किए।
उसने अपनी बेटी प्रभावती गुप्त का विवाह मध्य दक्कन के वाकाटक वंश के शासक रूद्रसेन द्वितीय के साथ किया।
इस वैवाहिक संबंध से चन्द्रगुप्त को अपनी समस्त सेना को शकों के विरुद्ध इकट्ठी करने का अवसर मिल गया। प्रभावती वाकाटक राज्य की प्रभावशाली महारानी थी।
चन्द्रगुप्त कई प्रकार के नये सिक्के जारी किए। उसके शासन काल में कला, साहित्य और विज्ञान का अभूतपूर्व विकास हुआ।
कला साहित्य की प्रगति को देखते हुए इतिहासकारों ने उसके काल को स्वर्णकाल कहा है।