अकबर (Akbar) की धार्मिक सहिष्णुता की नीति को सुलह-ए-कुल (Sulh-i-Kul) की नीति मानी जाती है।
इबादतखाना की चर्चा के बाद अकबर यह महसूस करने लगा था कि विभिन्न धर्मों में अराध्य देवों की विभिन्नता होते हुए भी सभी धर्मों में अनेक अच्छी बातें हैं।
इसने महसूस किया कि यदि अनेक धर्मों की अच्छी-अच्छी बातों पर बल दिया जाए तो देश के विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों में सद्भावना और मित्रता पैदा होगी।
अतः अकबर ने सर्वधर्म समन्वय यानी सुलह-ए-कुल की नीति अपनाई।