आधुनिक समय में ब्रिटिश सरकार द्वारा जमींदारों के प्रति मैत्रीपूर्ण नीति अपनाई गयी। 1857 में तो कैनिंग द्वारा राजाओं और जमींदारों को आँधी में तरंगरोधक की संज्ञा दी गई थी।
ब्रिटिश शासकों द्वारा जमींदारों को बढ़ावा दिया जा रहा था क्योंकि जमींदार वर्ग अंग्रेज और रैयतों के बीच मध्यस्थ के रूप में थे।
जमींदारों के बल पर ही सुदूर भारत में शोषण परक शिकंजा कस दिया था।
जमींदारों के शोषण एवं ब्रिटिश सरकार की धनलोलूप नीतियों के चलते कृषकों को अपनी खेती से बेदखल होना पड़ा था।
इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप ब्रिटिश भारत में अनेकानेक कृषक आंदोलन हुए।