अनुकूलन (Adaptation)— सफलतापूर्वक जीवित रहने व प्रजनन करने हेतु किसी जीवधारी का अपने वातावरण के अनुरूप ढलना ही प्रायः अनुकूलन कहलाता है।
परंतु इस शब्द, अनुकूलता का प्रयोग किसी ऐसे लक्षण के लिए भी किया जाता है, जो उसे जीवधारी को अपने पर्यावरण के अनुकूल ढलने में मदद करता है।
मेढ़क का त्रिकोणाकार तुंड (snout) पश्च पादों में जाल (web), चमगादड़ में पंख इत्यादि अनुकूलताएँ ही हैं।
अनुकूलताओं का आनुवंशिक आधार (Genetic basis of adaptation)- किसी भी जाति के जीवधारियों के बीच काफी विभिन्नताएँ पाई जाती हैं।कुछ लक्षण जीवधारियों को उनके वातावरण में जीवित रहने व प्रजनन करने में सहायक सिद्ध होती हैं।
दूसरे शब्दों में, समष्टि (population) में पहले से ही विद्यमान विभिन्नताओं में से लाभदायक लक्षणों के चयन से ही जातियों में अनुकूलन होता है।
लैंडरबर्ग एवं लैंडरबर्ग के प्रयोग से इस तथ्य का पुष्टिकरण होता है कि— "अनुकूलन पूर्व विद्यमान विभिन्नताओं के चयन का परिणाम है।"
लैंडरबर्ग एवं लैंडरबर्ग ने पाया कि पैनिसिलीन-प्रतिरोधी (Penicillin resistant) बैक्टीरिया की कॉलोनियाँ सभी अगार प्लेटों पर एक जैसी थीं (यहाँ तक कि मास्टर प्लेट भी थी)।
इसी प्रकार पेनिसिलीन के लिए संवेदनशील (Penicillin-susceptible) कॉलोनियाँ भी सभी अगार प्लेटों पर एक-सी थीं।
इससे स्पष्ट होता है कि पेनिसिलीन-प्रतिरोधी बैक्टीरिया उत्परिवर्ती पहले से ही मास्टर प्लेट अर्थात् मूल समष्टि (original population) में मौजूद थे।