भारत-बांग्लादेश के सम्बन्धों पर एक आलोचनात्मक निबन्ध लिखें। Bharat Aur Bangladesh Ke Sambandhon Per Ek Aalochnatmak Nibandh Likhen
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भारत-बांग्लादेश के सम्बन्धों पर एक आलोचनात्मक निबन्ध लिखें। Bharat Aur Bangladesh Ke Sambandhon Per Ek Aalochnatmak Nibandh Likhen 

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बांग्लादेश (Bangladesh) भारत का पड़ोसी राष्ट्र है। इस राष्ट्र के उत्पन्न होने से अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अन्तर्गत विशेषकर भारत के लिए एक विकट समस्या उत्पन्न कर दी।

पूर्वी बंगाल में पाकिस्तान की सैनिक कार्यवाही के कारण लाखों लोगों को अपना वतन छोड़कर भारत आना पड़ा और शरणार्थियों की संख्या बढ़ कर एक करोड़ हो गई।

विश्व में इतनी बड़ी जनसंख्या का दूसरे देश में आगमन पहली घटना थी। विश्व के अधिकांश राष्ट्र पूर्वी बंगाल की घटना से स्वयं को अलग किए थे लेकिन भारत न तो तटस्थ रह सकता था और न ही अलग।

भारतीय हितों के परिप्रेक्ष्य में विवेचना करते हुए एम० सी० छांगला ने कहा बांग्लादेश का उद्भव हमारे अच्छे पड़ोसी की वृष्टि से स्वागत योग्य है।

इसके साथ हमारे सांस्कृतिक, राजनीतिक और व्यापारिक सम्बन्ध होंगे। यह पड़ोसी नहीं पाकिस्तान से भिन्न होगा।

क्या हम अपने पूर्वी भाग में भिन्न पड़ोसी चाहते? प्रसिद्ध पत्रकार अजित भट्टाचार्य का मत था, भूगोल, इतिहास, सांस्कृतिक और आर्थिक हितों की दृष्टि से इस संघर्ष की परिणति भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

शरणार्थियों के आगमन से स्थिति और गम्भीर हो गई है। इन सब बातों को देखते हुए भारत के लिए यह आवश्यक है कि इस लड़ाई का अन्त बांग्लादेश के पक्ष में हो।

सन् 1962 से 1965 में जितनी जोखिम थी उतनी ही इसमें विद्यमान है। इसमें निश्चय ही लाभ होंगे। वे इस प्रकार हैं—

  • हमारी सीमाओं के दोनों ओर एक सशक्त दुश्मन की जगह एक मित्र और दूसरा, कमजोर दुश्मन ही रह जायेगा,
  • कश्मीर की समस्या का समाधान भी सरल हो जायेगा,
  • धर्मनिरपेक्ष राज्य की महत्ता बढ़ेगी और धर्मतंत्रीय राष्ट्रवाद की मित्रता उजागर हो जायेगी।

स्वतंत्र बांग्लादेश के निर्माण के समय से लेकर 1975 तक भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध मित्रवत रहा और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति दोनों देशों के दृष्टिकोण और विचारों में प्रायः समानता रही।

दोनों राष्ट्र हिन्द महासागर क्षेत्र को शांति का क्षेत्र बनाये रखना चाहते थे। दोनों राष्ट्रों के प्रमुखों ने परस्पर सम्बन्ध बनाने के क्षेत्र में सर्वप्रथम 19 मार्च, 1972 को मैत्री संधि स्थापित किया।

मई, 1974 में बांग्लादेश और भारत के बीच सीमांकन सम्बन्धी समझौता हुआ जिसके अनुसार भारत ने दाहा ग्राम और मारकोट का क्षेत्र बंगलादेश को दे दिया और बांग्लादेश ने बेरूबाड़ी पर भारत का अधिकार स्वीकार कर लिया।

मई 1974 में ही भारत ने बांग्लादेश को 40 करोड़ रुपये का ऋण देना भी स्वीकार कर लिया। इस प्रकार शेख मुजीब के कार्यकाल में दोनों राष्ट्र का सम्बन्ध परस्पर मैत्रीपूर्ण था।

15 अगस्त, 1975 को शेख मुजीब की हत्या कर दी गई। पहले खोदकर मुश्ताक अहमद और पुनः 6 नवम्बर, 1976 को जस्टिस बाबू सादात सयाम राष्ट्रपति बने।

30 जनवरी, 1976 को मंजर जनरल जियाउर रहमान ने मुख्य मार्शल लॉ प्रशासक बनकर सत्ता पर अधिकार कर लिया।

24 मार्च, 1982 को राष्ट्रपति अब्दुल सत्तार के असैनिक शासन का तख्ता पलटकर लेफ्टीनेन्ट जनरल एच० एम० ईरशाद मुख्य मार्शल लॉ प्रशासक बन गये।

फरक्का समझौता दोनों राष्ट्रों में 29 सितम्बर 1977 में सम्पन्न हुआ जिसके अन्तर्गत भारत ने गंगा जल विवाद को अन्तर्राष्ट्रीय रूप न देने के लिए सहमत कर लिया। अन्ततः यह समझौता 5 नवम्बर, 1977 को लागू हुआ।

लेकिन चूँकि फरक्का समझौता गंगा के पानी के बंटवारे की समस्या का स्थायी समाधान नहीं था परिणामस्वरूप उसे 1982 के समझौते द्वारा रद्द कर दिया गया।

अप्रैल, 1982 में लेफ्टीनेन्ट जनरल एच० एम० इरशाद के सत्तारूढ़ होने के बाद भारत-बांग्लादेश सम्बन्धों में व्यापक स्तर पर सुधार हुआ।

अतः दोनों राष्ट्रों के मध्य निम्नांकित मुद्दों पर सहमति व्यक्त कर समस्याओं का निराकरण किया गया।

दोनों राष्ट्रों के बीच एक अन्य समझौते के अन्तर्गत भारत ने बांग्लादेश भारत के कूच बिहार में स्थित दाहाग्राम और अमरकोटा के दो अन्तः क्षेत्रों (Enclaves) को बांग्लादेश की मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए स्थायी पट्टे पर एक तीन बीघा, गलियारा प्रदान कर दिया।

इस गलियारे पर भारत बांग्लादेश से एक टका किराये लेने का अनुबन्ध समाप्त कर दिया है। साथ ही दोनों देशों के आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए एक संयुक्त आर्थिक सहयोग की स्थापना की गई है।

लेकिन बांग्लादेश रायफल के अधिकारियों ने इस समझौते का उल्लंघन करके 1979 में भारतीयं जमीन पर अपना दावा जताया और भारतीय किसानों पर गोलियाँ चलाई।

लेकिन 1974 के समझौते के अनुसार मुहरी नदी के पानी के मध्य रेखा ही भारत बांग्लादेश की सीमा रेखा है। यह विवाद 44/45 एकड़ जमीन के बारे में है जो त्रिपुरा राज्य के बोलनिया कस्बे के पास मुहरी नदी के भारतीय तट पर है।

30 जुलाई 1983 को दोनों देशों में तीस्ता जल समझौता हुआ। इस समझौते के अनुसार तीस्ता नदी के पानी के तदर्थ आधार पर बंटवारे पर भारत और बांग्लादेश सूखे मौसम के दौरान सहमत हो गये।

पुनः फरक्का में गंगा नदी के जल के बँटवारे पर भारत और बांग्लादेश के बीच सहमति के समझौते पर 22 नवम्बर, 1984 को दिल्ली में हस्ताक्षर हुए।

जुलाई 1986 में जनरल इरशाद ने तीन दिवसीय भारत सद्भाव यात्रा की और भारतीय नेताओं के साथ द्विपक्षीय प्रश्नों पर बातचीत की।

उपरोक्त बिन्दुओं पर दोनों राष्ट्रों के मध्य समझौता होने के बावजूद अनेकानेक मुद्दों पर मतभेद कायम है।

गंगा-ब्रह्मपुत्र नहर बनाने के प्रश्न पर दोनों राष्ट्रों के मध्य मतभेद बने हुए भारत द्वारा पूर्वी सीमा पर बाड़ लगाने का मामला इतना उग्र हो गया कि बांग्लादेश ने अप्रैल 1984 में गोलाबारी तक कर दी।

इसी प्रकार चमका आदिवासियों की वापसी के प्रश्न पर भी दोनों राष्ट्रों के मध्य गम्भीर मतभेद बने हुए हैं।

भारत में चमका आदिवासियों की बाढ़ सी आ गई और बांग्लादेश उन्हें लेने में आनाकानी कर रहा है।

इसी प्रकार अप्रैल 1986 में भारत-बांग्लादेश में सीमा पर मुहरी नदी पर तट बाँध बनाने के भारत के कार्य को लेकर दोनों देशों में तनाव पैदा हो गया।

बांग्लादेश ने अपने अर्द्ध-सैनिक बल की सहायता के लिए कई सैनिक यूनिटों को तैनात कर दिया और दोनों देशों के अर्द्धसैनिकों के बीच कई बार मुठभेड़ हुई। बांग्लादेश ने भारत द्वारा तट बाँध के निर्माण का विरोध किया।

मई, 1985 में बांग्लादेश में भीषण तूफान आया और इस दौरान भारतीय प्रधानमंत्री की बांग्लादेश यात्रा भारत की छवि को सुधारने की दिशा में एक सशक्त प्रयास था।

18 अक्टूबर को तीन वर्षों के लिए नसाउ (वहामा) में दोनों राष्ट्रों के मध्य गंगा के पानी को लेकर एक समझौता हुआ।

सितम्बर 1988 में बांग्लादेश में भीषण बाढ़ आई तो एक पड़ोसी मित्र की जिम्मेदारियों अनुरूप बांग्लादेश द्वारा सहायता के लिए की गई अपील के जबाव में वहाँ राहत पहुँचाने वाला भारत पहला देश था।

साथ ही भारत ने 7 लाख डॉलर की आपात सहायता की भी घोषणा की। राष्ट्रपति इरशाद 29 सितम्बर 1988 को भारत आये और बाढ़ नियंत्रण प्रबंध के लिए दोनों देशों के जल संसाधन विशेषज्ञों का एक संयुक्त कार्य दल गठित किया गया।

27 फरवरी, 1991 में बांग्लादेश में चुनाव सम्पन्न हुआ और बेगम खालिदा जिया प्रधानमंत्री बनी। लेकिन प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया सत्ता में आने के बाद से ही भारत विरोधी तानाशाही रवैया अपनाये हुई है साथ ही भारत से समान दूरी बनाये रखने की पक्षधर है।

खालिदा जिया चीन और अमेरिका से नजदीकी बनाये रखने में ही अपनी और बंगलादेश की भलाई देखती है।

यद्यपि चीन स्वयं वर्तमान में भारत के लिए खतरा नहीं है फिर भी वह नेपाल, बंगलादेश और श्रीलंका की सैनिक शक्ति बढ़ाकर भारत की घेराबन्दी की नीति अपना रहा है।

संक्षेप में बंगलादेश, जिसका अस्तित्व भारत द्वारा ही सम्भव हुआ है, आज भारत को ही कोसता है जबकि भारत हमेशा उसके दुःख सुख में साथ निभाता रहा है।

भारत ने बांग्लादेश को विश्व राजनीति, विशेष कर सार्क में एक विशेष स्थान प्रदान करवाया है। फिर बांग्लादेश भारत विरोधी रवैया अपनाये हुए है।

बांगला देश इस मानस से पीड़ित है कि एक बड़े देश का छोटा पड़ोसी है परिणाम स्वरूप, वह क्षेत्रातीत सम्बन्धों पर बल देता रहा है।

इससे क्षेत्र में महाशक्ति को हस्तक्षेप करने का अवसर मिलता है। एक असंलग्न राष्ट्र होकर भी बांग्लादेश पश्चिम की ओर अधिक झुका हुआ है।

प्रसिद्ध पत्रकार एम० जे० अकबर के शब्दों में, दी शताब्दी पूर्व वह दिसम्बर का महीना था।

जब पाकिस्तान को लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षवाद का निर्यात कर सकते थे। इसके बजाय हमने स्वयं अपनी ही पीठ थपथपाने पर समय नष्ट कर दिया।

भारत-बांग्लादेश सम्बन्धों में उत्तरोत्तर सुधार हो रहा है। मई 1991 ई० में बंगलादेश के विदेशमंत्री की भार तयात्रा से दोनों देशों में तेजी से सुधार हुआ नदी के जल बँटवारे पर अक्टूबर 1991 में नई दिल्ली में और फरवरी 1992 में ढाका में सचिव स्तर की बातचीत की गयी।

अक्टूबर 1991 में राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्ष की बैठक के दौरान हरारे में भारत के प्रधानमंत्री की बंगलादेश के प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया से हुई भेंट से भारत के बंगलादेश के साथ सम्बन्ध और प्रगाढ़ हुए।

खालिदा जिया की इस यात्रा के दौरान अग्रलिखित तीन करार भी सम्पन्न हुए जो इस प्रकार है—

  • चांसरी और आवासी भवनों के निर्माण हेतु भूखण्डों के आदान-प्रदान का समझौता ज्ञापन,
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान।
  • गहरे कराधान के परिहार से सम्बद्ध करार के अनुसमर्थन के दस्तावेजों का आदान-प्रदान। 26 जून 1992 को भारत ने तीन वीघा क्षेत्र बंगलादेश को हस्तांतरित कर दिया। ऐसा भारत ने बांगला देश के साथ मैत्री को अधिक मजबूत बनाने की मंशा से किया था।

2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बांगलादेश यात्रा पर दोनों देशों के बीच भूमि सीमा समझौते पर ऐतिहासिक करार हुआ।

इस समझौते के साथ ही दोनों देशों के बीच पिछले 41 वर्षों से चले आ रहे सीमा विवाद का समाधान हो गया। समझौते के अन्तर्गत दोनों देशों के बीच 162 बस्तियों का आदान प्रदान हुआ।

बंगलादेश को 111 बस्तियां मिलीं जबकि 51 बस्तियां भारत का हिस्सा बनी; भारत को 500 एकड़ भूमि प्राप्त हुई, जबकि बांगलादेश को 10,000 एकड़ जमीन मिली।

इसके अतिरिक्त 6.1 किमी अनिश्चित सीमा का भी सीमांकन किया जाएगा। इस प्रकार 51 हजार लोगों की नागरिकता का सवाल भी सुलझ गया।

2021 में भारत के प्रधानमंत्री बांग्लादेश की आजादी के स्वर्ण जयन्ती समारोह में शामिल होने के लिये अधिकारिक दौरे पर रहे।

बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुर्जीबुर्रहमान की जन्म शताब्दी और भारत में बांग्लादेश के बीच 50 वर्षों की राजनयिक संबंधों को देखते हुए यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ बनाती है।

इस सबके बावजूद कतिपय मुद्दों को लेकर दोनों देशों में मतभेद बने हुए हैं। गंगा-ब्रह्मपुत्र नहर बनाने के प्रश्न पर दोनों देशों में मतभेद बने हुए हैं।

बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थी भारत में गैर-कानूनी तौर पर प्रवेश करते हैं और भारत के असम आन्दोलन के मूल में इन विदेशी आगन्तुकों' की समस्या है।

अतः असम समस्या के समाधान और विदेशियों के भारत में गैर-कानूनी तौर पर प्रवेश को रोकने के लिए भारत ने सीमाओं पर कांटेदार तार लगाने का निर्णय लिया। बांग्लादेश ने भारत के इस निर्णय का विरोध किया ओर इसे घेराबन्दी की संज्ञा दी है।

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