कार्यशीलता के आधार पर किसी भी जनसंख्या को दो भागों में बाँटा जाता है— कार्यशील और गैर-कार्यशील।
कार्यशील जनसंख्या किसी भी प्रकार के आर्थिक उपार्जन या व्यवसाय में लगी रहती है। इन व्यवसायों में कृषि, वानिकी, मत्स्यन, विनिर्माण, निर्माण, परिवहन, संचार, व्यापार तथा अन्य सेवाओं को सम्मिलित किया जाता है।
इन व्यवसायों को मुख्य रूप से तीन और कुल मिलाकर पाँच खंडों में विभक्त किया जाता है। ये हैं—
i. प्राथमिक व्यवसाय (Primary Occupation) : इसके अंतर्गत आखेट, भोजन संग्रह, पशुपालन एवं दुग्ध उत्पादन, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, कृषि एवं खनन कार्य सम्मिलित किए जाते हैं।
प्राथमिक कार्यकलाप करने वाले लोग लाल कॉलर श्रमिक कहलाते हैं, क्योंकि उनका कार्य क्षेत्र घर से बाहर होता है।
ii. द्वितीयक व्यवसाय (Secondary Occupation)— द्वितीयक गतिविधियाँ प्रकृति में पाए जाने वाले कच्चे माल का रूप बदलकर उसे मूल्यवान बना देती है। कपास से वस्त्र, गन्ना से चीनी बनाना, लौह-अयस्क से इस्पात बनाना, लकड़ी से फर्नीचर बनाना इत्यादि द्वितीयक व्यवसाय हैं। इस प्रकार द्वितीयक क्रियाएँ विनिर्माण, प्रसंस्करण और निर्माण (अवसंरचना) उद्योग से संबंधित है।
iii. तृतीयक व्यवसाय (Tertiary Occupation): तृतीयक कार्यकलाप सेवा सेक्टर (Service Sector) से संबंधित है। इसके अंतर्गत व्यापार, परिवहन, संचार और अन्य सेवाएँ सम्मिलित होती हैं।
नलसाज, बिजली मिस्त्री, तकनीशियन, धोबी, नाई, दुकानदार, चालक, कोषपाल, अध्यापक, डॉक्टर, वकील, प्रकाशक इत्यादि द्वारा किए गए कार्य तृतीयक व्यवसाय कहलाते हैं।
हाल ही में विद्वानों ने सेवा सेक्टर को चतुर्थ एवं पंचम क्रियाकलापों में विभक्त किया है।
IV. चतुर्थ व्यवसाय (Quarternary Occupation)— चतुर्थ व्यवसाय सेवा सेक्टर के उस प्रभाग को कहा जाता है, जो ज्ञानोन्मुखी है।
कार्यालय भवनों, विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, अस्पताल एवं डॉक्टर के कार्यालयों, रंगमंचों, लेखाकार्य और दलाली को फर्मों में काम करने वाले कर्मचारी इस वर्ग की सेवाओं से संबंध रखते हैं।
V. पंचम व्यवसाय (Quintinary Occupation)—उच्चतम स्तर के निर्णय लेने तथा नीतियों का निर्माण करने वाले व्यवसाय को पंचम व्यवसाय कहते हैं। इन्हें स्वर्ण कॉलर व्यवसाय कहा जाता है।