भारत में हजारों वर्ष पूर्व उत्तम कोटि का इस्पात बनाया जाता था। दिल्ली का लौह-स्तंभ तथा कोणार्क मंदिर की लोहे की कड़ियाँ इसके प्रमाण है। प्राचीन काल में लोहा-इस्पात का उत्पादन घरेलू उद्योगों में होता था।
भारत में लोहा-इस्पात का सबसे पहला कारखाना 1830 में तमिलनाडु में पोर्टोनोवो (Portonovo) नामक स्थान पर स्थापित किया गया, परंतु प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण इसे बंद कर दिया गया।
आधुनिक युग का पहला कारखाना 1874 ई० में पश्चिम बंगाल में कुल्टी नामक स्थान पर खुला, जिसे बाद में “बराकर आयरन वर्क्स" के नाम से जाना गया।
आधुनिक ढंग का बड़ा कारखाना 1907 ई० में झारखंड में स्वर्णरेखा घाटी के साकची नामक स्थान पर खुला। इसका नाम “टाटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी" (TISCO) रखा गया।
इसके संस्थापक उद्योगपति जमशेदजी नौसेरवान जी टाटा थे, जिनके नाम पर इस स्थान का नाम जमशेदपुर या टाटा पड़ा।
इसी के निकट बर्नपुर में 1919 ई० में एक कारखाना खोला गया, जो आज “इंडियन आयरन एण्ड स्टील कंपनी" (IISCO) के नाम से प्रसिद्ध है।
इसी में 1936 ई० में कुल्टी के “बराकर आयरन वर्क्स" को मिला दिया गया। दक्षिण भारत में 1923 ई० में कर्नाटक के भद्रावती नामक स्थान पर भद्रा नदी के किनारे एक कारखाना खोला गया, जो आज विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील लिमिटेड (VISL) के नाम से जाना जाता है।
इस प्रकार स्वतंत्रता के पूर्व भारत में जमशेदपुर, कुल्टी-बर्नपुर तथा भद्रावती में लोहा-इस्पात के कारखाने स्थित थे।
ये सभी कारखाने निजी क्षेत्र में थे, किंतु भद्रावती के कारखाना को 1963 ई० में सरकारी नियंत्रण में ले लिया गया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लोहा-इस्पात उद्योग का विकास तेजी से हुआ। भिलाई (छत्तीसगढ़), राउरकेला (उड़ीसा) और दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) के अतिरिक्त बोकारो (झारखंड), सलेम (तमिलनाडु), विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश) और विजयनगर (कर्नाटक) में कारखाने खोले गए।
ये सभी कारखाने सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित किए गए हैं तथा "स्टील ऑथरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) के नियंत्रण में है, जिसे 1974 ई० में कायम किया गया।