भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास दो प्रकार के हुए हैं, जो इस प्रकार है—
उत्प्रवास (Emigration), जिसके अंतर्गत भारत के अनेक लोग विदेशों में जाकर बस गये हैं, और आप्रवास (Immigration), जिसके अंतर्गत विदेशों से अनेक लोग भारत में आकर बस गये हैं।
2001 की जनगणना के अनुसार भारत में अन्य देशों से 50 लाख व्यक्तियों का आप्रवास हुआ है, जिनमें 59.8% बांग्लादेश से, 19.3% पाकिस्तान से और 11.6% नेपाल से आये हैं।
जहाँ तक भारत से उत्प्रवास का प्रश्न है, ऐसा अनुमान है कि भारतीय प्रसार (Indian Diaspora) के लगभग 2 करोड़ लोग हैं, जो 110 देशों में फैले हुए हैं।
भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के मुख्यतः निम्नलिखित कारण हैं—
i. आर्थिक कारण (Economic Factors) : आर्थिक अवसरों की तलाश में एक ओर भारत से व्यवसायी, शिल्पी, फैक्ट्री मजदूर थाइलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया इत्यादि देशों में, अर्द्धकुशल और कुशल श्रमिक प० एशिया के पेट्रोल उत्पादक देशों में तथा डॉक्टर, अभियंता, प्रबंध परामर्शदाता इत्यादि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम इत्यादि देशों में गये तो दूसरी ओर नेपाल, तिब्बत इत्यादि देशों से लोग रोजगार के लिए भारत आये।
ii. सामाजिक-राजनैतिक कारण (Socio-political Factors) — उपनिवेश काल में अंग्रेजों, फ्रांसीसियों, जर्मनों, डच और पुर्तगालियों द्वारा उत्तरप्रदेश और बिहार से लाखों श्रमिकों को रोपण कृषि के लिए अनेक अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों में भेजा गया।
इन मजदूरों की दशाएँ दासों से बेहतर नहीं थी। आज भी उदारीकरण के पश्चात 90 के दशक में शिक्षा और ज्ञान आधारित भारतीय उत्प्रवासियों ने भारतीय प्रसार को विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली प्रसार में से एक बना दिया है।
इसके विपरीत, प्राचीन नालन्दा, विक्रमशिला इत्यादि में शिक्षा प्राप्त करने के लिए लाखों दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश के लोग भारत आये।
भारत-पाक विभाजन, बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम, तिब्बत विवाद इत्यादि ने भी लाखों शरणार्थियों को भारत आने को मजबूर कर दिया।
इस प्रकार सामाजिक-राजनैतिक कारणों से भारत में अंतर्राष्ट्रीय आप्रवास और उत्प्रवास दोनों हुआ है।