अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (International trade) विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान को कहते हैं।
राष्ट्रों को व्यापार करने की आवश्यकता उन वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए होती है, जिन्हें या तो वे स्वयं उत्पादित नहीं कर सकते या जिन्हें वे अन्य स्थान से कम दाम में खरीद सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार उत्पादन में विशिष्टीकरण तथा आवश्यकता से अधिक उत्पादन का परिणाम है।
किसी भी सामग्री का अधिक मात्रा में उत्पादन ही यह सुनिश्चित करता है कि वह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सम्मिलित किया जाएगा।
इस प्रकार आयात और निर्यात अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के दो पहलू हैं, और आयातक और निर्यातक देश एक दूसरे के पूरक होते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार हैं— प्राकृतिक संसाधनों में असमानता, आवश्यकता से अधिक उत्पादन, वस्तुओं की कमी, परिवहन और संचार का विकास, प्रौद्योगिकी में असमानता, सांस्कृतिक विशिष्टता, व्यापारिक नीतियाँ, शान्ति और राजनीतिक स्थिरता, राजनीतिक संबंध और आर्थिक माँग।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वस्तुओं और सेवाओं के तुलनात्मक लाभ, परिपूरकता व हस्तांतरणीयता के सिद्धांतों पर आधारित होता है और सिद्धान्ततः यह व्यापारिक भागीदारों को समान रूप से लाभदायक होना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से देशों को निम्न लाभ पहुँचते हैं—
- देश उन वस्तुओं का आयात कर सकते हैं जिनका उनके यहाँ उत्पादन नहीं होता तथा सस्ते मूल्य पर खरीदा जा सकता है।
- देश अपने यहाँ अतिरिक्त उत्पादन को उचित मूल्य पर अन्य देशों को बेच सकते हैं, जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी।
- देश अपने विशिष्ट उत्पादन का निर्यात कर सकते हैं, जिससे विश्व अर्थव्यवस्था में सुधार आता है।
- आधुनिक युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अंतर्गत प्रौद्योगिक ज्ञान तथा अन्य बौद्धिक सेवाओं का भी आदान-प्रदान किया जाता है, जिससे दोनों देशों को लाभ पहुँचता है।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से देशों के बीच आपसी सहयोग और भाईचारा बढ़ता है।