शिक्षा के अधिकार का प्रथम प्रयास सन् 1882 में ज्योतिराव फुले ने भारतीय शिक्षा आयोग (हंटर कमीशन) के सामने , जो असफल रहा।
लेकिन शिक्षा का अधिकार संघर्ष वहीं नहीं रुका। लंबी लड़ाई के बाद 2002 में 86 वें संविधान संशोधन 21ए के बाद 6 वर्ष से 14 वर्ष के बच्चों के लिए बुनियादी शिक्षा मौलिक अधिकार में शामिल हुआ।
आगे चलकर 2009 में इस कानून को संसद के दोनों सदनों नें पारित किया और बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 बना।
सन् 2010 की 1 अप्रैल से इसे पूरे देश में 3 वर्षों के दौरान यानी 31 मार्च 2013 से पूरी तरह से लागू करने की अधिसूचना जारी हुई।
इस कानून के अंतर्गत बच्चों के अधिकार इस प्रकार हैं:
- निःशुल्क का तात्पर्य है, बच्चों से किसी भी प्रकार का चंदा या शुल्क नहीं लिया जाएगा ताकि उनकी स्कूली शिक्षा में बाधा न पड़े।
- अनिवार्य से तात्पर्य है - राज्य या स्थानीय निकाय जो 40 की संख्या में बच्चों को एक किलोमीटर की परिधि में प्राथमिक और 3 किलोमीटर की परिधि में प्रारंभिक विद्यालय की व्यवस्था की जाएगी।
- 6 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों को निःशल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार प्राप्त है।
- सरकारी विद्यालयों की उपलब्धता ना होने पर स्थानीय निकाय का दायित्व होगा कि वह सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालय में उनकी क्षमता के 25% गरीब छात्रों का नामांकन कराएं।
- सहायता प्राप्त विद्यालयों की कमी होने पर गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में गरीब एवं विशेष श्रेणी के बच्चों को नामांकित किया जाएगा।
- गैर नामांकित या बीच में पढ़ाई छोड़कर जाने वाले बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार कक्षाओं में दाखिला मिलेगा।
- कक्षा एक से आठवीं तक के किसी भी बच्चे को अनुत्तीर्ण नहीं किया जाएगा।
- बच्चों को किसी भी प्रकार की प्रवेश परीक्षा, साक्षात्कार या प्रवेश शुल्क नहीं देना होगा।
- बच्चों को किसी भी प्रकार की मारपीट या भेदभाव का शिकार होने से बचाया जाएगा।