भरतनाट्यम नृत्य का उल्लेख करें? Bharatnatyam Nritya Ka Ulekh Karein?
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भरतनाट्यम नृत्य शैली का विकास तमिलनाडु में हुआ।

भरतनाट्यम तमिल संस्कृति में लोकप्रिय एकल नृत्य है, जो शुरुआती दिनों में मंदिर की देवदासियों के द्वारा भगवान की मूर्ति के समक्ष किया जाता था। इसे दासीअट्टम के नाम से भी जाना जाता था।

देवदासियों के द्वारा किए जाने के कारण इसे समाज में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता था।किंतु 20वीं शताब्दी में रुकमणी देवी अरुंडेल तथा ई. कृष्ण अय्यर के प्रयासों ने इस नृत्य को सम्मान दिलाया।

वर्तमान समय में तमिलनाडु में इस नृत्य की शिक्षा ग्रहण करना तथा नृत्यभ्यास व मंचन को प्रतिष्ठा के विषय के रूप में देखा जाने लगा है।

भारतनाट्यम में नृत्य और अभिनय सम्मिलित होता है। इस नृत्य में शारीरिक भंगिमा पर विशेष बल दिया जाता है। नृत्य का आरंभ आलरिपू/स्तुति से तथा अंत तिल्लाना से होता है, जिसमें बहुचर्चित नृत्य भाग के साथ-साथ नारी सौंदर्य के अलग-अलग लावण्यों को दिखाया जाता है।

इस नृत्य का उदाहरण नटराज की मूर्ति को माना जाता है।

इसमें पैरों से लयबद्ध तरीके से जमीन पर थाप दी जाती है, पैर घुटने से विशेष रूप से झुके रहते हैं तथा हाथ, गर्दन और कंधे विशेष तरीके से गतिमान होते हैं।

भरतनाट्यम शारीरिक प्रक्रिया को तीन भागों में बांटा जाता है- समभंग, अभंग एवं त्रिभंग

इस नृत्य के प्रमुख कलाकारों में पद्मा सुब्रमण्यम, यामिनी कृष्णमूर्ति, सोनल मानसिंह, मृणालिनी साराभाई, मल्लिका साराभाई आदि।

इस नृत्य को निम्नलिखित क्रमों में किया जाता है- 

  • आलरिपु : यह इस नृत्य का शुरुआती चरण होता है। इसमें नर्तक अपने नृत्य देवता तथा दर्शकों की स्तुति कर नृत्य प्रारंभ करता है।
  • जातिस्वरम : यह नृत्य का दूसरा चरण होता है। इसमें नृतक द्वारा अपनी कला ज्ञान अर्थात स्वर, ताल एवं अंग-प्रत्यंग तथा मुद्राओं का परिचय दिया जाता है।
  • शबदम : यह तीसरे क्रम का नित्य अंश होता है।  इसमें बहुविचित्र तथा लावण्यम तरीके से नृत्य प्रस्तुत कर  नट्टायभावों का वर्णन किया जाता है।
  • वर्णम : नृत्य के इस अंश में नृत्य कला के अलग-अलग वर्णों को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें भाव, ताल और राग, तीनों की प्रस्तुति की जाती है।
  • पदम : इस अंश में 7 पंक्तियुक्त वंदना क्रमश : तमिल, तेलुगू तथा संस्कृत भाषा में होती है और इसी अंश में नर्तक के अभिनय कौशल का पता चलता है।
  • तिल्लाना : यह अंश भरतनाट्यम नृत्य शैली का आखरी अंश होता है और इसमें बहुचर्चित नृत्य  भंगिमाओं के साथ-साथ नारी के सौंदर्य के लावण्य को दिखाया जाता है।
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