पहाड़िया जनजाति (Paharia Tribes) राजमहल के इर्द-गिर्द रहते थे और वहीं जंगल की उपज से अपनी गुजर-बसर करते थे।
ये झूम खेती करते थे अर्थात् जंगल के किसी छोटे से हिस्से की झाड़ियों को काटकर और घास-फूस को जलाकर जमीन-साफ कर लेते थे और राख की पोटाश से उपजाऊ बनी जमीन पर खाने के लिए दालें और ज्वार-बाजरा उगा लेते थे।
वर्षों तक उस जमीन पर खेती करते फिर उसे परती छोड़कर नये इलाके में चले जाते थे।
उनका संपूर्ण जीवन यहाँ की पहाड़ियों में ही सिमटा हुआ था। वे बाहरी लोगों का विरोध करते और उस रास्ते से जानेवालों से पथकर वसुलते थे।