अपराध की जांच करने में पुलिस की भूमिका (Role Of Police In Investigating Crime)—
पुलिस का एक महत्त्वपूर्ण काम होता है किसी अपराध के बारे में मिली शिकायत की जाँच करना । जाँच के लिए गवाहों के बयान (Statement) दर्ज किए जाते हैं और सबूत इकट्ठा किए जाते हैं।
इस जाँच के आधार पर पुलिस अपनी राय बनाती है। अगर पुलिस को ऐसा लगता है कि सबूतों से आरोपी का दोष साबित होता दिखाई दे रहा है तो पुलिस अदालत में आरोपपत्र / चार्जशीट दाखिल कर देती है।
यह तय कर देना पुलिस का काम नहीं है कि कोई व्यक्ति दोषी है या नहीं। यह न्यायाधीश को तय करना होता है।
आपने कानून के शासन के बारे में पढ़ा है। इसका सीधा मतलब यह होता है कि हर व्यक्ति देश के कानून के अधीन है। पुलिस भी इसी कानून के तहत आती है।
लिहाजा पुलिस को हमेशा कानून के मुताबिक और मानवाधिकारों का सम्मान करते हुए जाँच करनी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने गिरफ़्तारी, हिरासत और पूछताछ के बारे में पुलिस के लिए कुछ दिशानिर्देश (Guidelines) तय किए हुए हैं।
इन दिशानिर्देशों के अनुसार पुलिस को जाँच के दौरान किसी को भी सताने, पीटने या गोली मारने का अधिकार नहीं है। किसी छोटे से छोटे अपराध के लिए भी पुलिस किसी को कोई सज़ा नहीं दे सकती।
संविधान के अनुच्छेद 22 और फ़ौजदारी कानून में प्रत्येक गिरफ़्तार व्यक्ति को निम्नलिखित मौलिक अधिकार दिए गए हैं—
- गिरफ़्तारी के समय उसे यह जानने का अधिकार है कि गिरफ़्तारी किस कारण से की जा रही है।
- गिरफ़्तारी के 24 घंटों के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने का अधिकार।
- गिरफ़्तारी के दौरान या हिरासत में किसी भी तरह के दुर्व्यवहार या यातना से बचने का अधिकार ।
- पुलिस हिरासत में दिए गए इकबालिया बयान को आरोपी के खिलाफ़ सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
- 15 साल से कम उम्र के बालक और किसी भी महिला को केवल सवाल पूछने के लिए थाने में नहीं बुलाया जा सकता।