जंगल पर निबंध। Jungle Par Nibandh
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जंगल पर निबंध। Jungle Par Nibandh Or Essay on Forest in Hindi.

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जंगल पर निबंध | Jungle Par Nibandh

भूमिका (Introduction)

अपने आप उगनेवाले वृक्षों तथा झाड़ों से भरे हुए स्थान को जंगल कहा जाता है। यह संस्कृत शब्द (Sanskrit shabd) है।

वन, अरण्य, विपिन, कानन आदि इसके पर्याय हैं। जंगल विभिन्न प्रकार के पशुओं एवं पखेरुओं की शरणस्थली है। जंगल प्रकृति की अनुपम देन है।

जंगल अपनी हरीतिमा से पहाड़ पहाड़ियों को - शोभायमान बनाते हैं, अपनी अलौकिक सुगंध से पार्श्व परिवेश को सुवासित करते हैं।

तथा हरीतिमा की सुखद छाया में प्रवाहित अपनी कुल्याओं (छोटी नदियों) के कल-कल निनाद से सर्वकल्याण का घोष करते हैं।

जंगल शिवत्व एवं सौंदर्य से परिपूर्ण समाधिस्थ योगी की तरह प्रतीत होते हैं। मानव सभ्यता और संस्कृति का विकास जंगल में निवास करनेवाले तपस्वियों, चिंतकों और मनीषियों की अनवरत साधना का फल है।

वेद, पुराण और 'अरण्यक' जंगलों में ही सृष्ट हुए। जंगलों के सौंदर्य, सुवास और संगीत के मधुमय परिवेश में सुखद शांति विराजमान होती है।

जिस शांति की आज हमें आवश्यकता है, उसकी प्राप्ति हमें जंगलों के आशीर्वाद से ही होगी।

जंगल का महत्त्व (Jungle Ka Mahatva)

जंगल प्राणवायु (ऑक्सीजन) के अक्षय भंडार हैं। ये जगत् के समस्त प्राणियों को प्राणवायु का उपहार देकर उन्हें जीवित तथा सक्रिय रखते हैं।

जंगल से लाभ (Jungle Se Labh)

जंगल के पेड़-पौधे हमारी ईंधन की समस्या का समाधान करते हैं। फर्नीचर बनाने की लकड़ी हमें जंगल से ही प्राप्त होती है।

कागज बनाने के लिए कच्ची सामग्री हमें जंगल से ही मिलती है। जंगल के पेड़-पौधों की प्रार्थना पर ही वरुण देव धरती की प्यास बुझाने की कृपा करते हैं।

रोगों से मुक्ति के लिए जंगल ही तरह-तरह की औषधियाँ (Aushadhiyan) हमें उपहारस्वरूप प्रदान करती हैं।

विभिन्न प्रकार के पके फलों की मिठास से जीव-जंतु तथा मानव तृप्त होते हैं।

जंगलों की अंधाधुंध कटाई से हानि (Jungle Ki Andhadhun Katai Se Hani)

भौतिक सभ्यता के विकास के कारण जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है।

कल-कारखानों (Factories) और उद्योग-धंधों की स्थापना के लिए जगह की आवश्यकता है। जिसकी पूर्ति जंगलों की कटाई से ही संभव है।

जंगलों के कटने से पर्यावरण (Environment) प्रदूषित होता है, क्योंकि जंगल ही पर्यावरण के निस्स्वार्थ संरक्षक हैं। जंगलों के कटने से ही मानव विभिन्न संकटों से घिर गया है।

उपसंहार (Conclusion)

जंगल बचेंगे तो हम बचेंगे। जंगल संरक्षण (Forest Protection) ही धरती का संरक्षण है। हमारा पावन कर्तव्य है कि हम जंगल संरक्षण के लिए हमेशा तत्पर रहें।

भारतीय नागरिक यदि प्रतिवर्ष दो-चार पेड़ लगाए, तो कटे जंगलों की भरपाई हो सकती है।

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जंगल पर निबंध (Jungle Par Nibandh)

किसी भी देश के आर्थिक विकास एवं उसकी समृद्धि के लिए वनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आर्थिक विकास के लिए वन केवल कच्चे माल की पूर्ति ही नहीं करते वरन् बाढ़ पर नियंत्रण करके भूमि के कटाव को भी रोकते हैं।

भारत एक विशाल देश है, किन्तु अन्य देशों की अपेक्षा भारत में वन क्षेत्र बहुत कम है।

वन प्राकृतिक ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। वनों में उगने वाले वृक्ष हमारे जीवन के मुख्य अंग हैं, क्योंकि ये कार्बन-डाइऑक्साइड का सेवन करके हमें प्राणवायु देते है। अन्यथा हमारा जीवन दूभर हो जाए।

वन हमारी भूमि को ढँकते हैं, और उसके पोषक तत्त्वों की रक्षा करते हैं।

जंगल का महत्व

भारतीय अर्थव्यवस्था में वनों का अत्यन्त महत्त्व है। इनसे न केवल जलाने के लिए लकड़ी मिलती है, बल्कि उद्योगों के लिए बहुत कच्चे पदार्थ भी मिलते हैं।

रोगों के उपचार के लिए औषधियाँ मिलती हैं, पशुओं के लिए चारा एवं सरकार के लिए राजस्व मिलता है।

वन देश की जलवायु को उचित बनाए रखते हैं, वर्षा को नियंत्रित करते हैं, भूमि-कटाव को कम करते हैं, रेगिस्तान को बढ़ने से रोकते हैं, तथा देश के प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं।

हमारे देश में वनों के क्षेत्र हर प्रदेश में असमान है। असम एवं मध्य प्रदेश में वन अधिक हैं, तथा अन्य राज्यों में कम।

देश में वन क्षेत्रों तक पहुँचने के लिए सड़कों की उचित व्यवस्था नहीं है। इस समस्या के कारण वनों का उचित दोहन नहीं हो पा रहा है। इसके लिए आवश्यक है, कि भारत सरकार इन वन क्षेत्रों में काम करें।

जंगल से लाभ

शहरों के निर्माण तथा नये शहरों के विकास के कारण जंगलों को काटकर साफ कर दिया जाता है, जिससे देश के वन क्षेत्र में निरन्तर कमी होती जा रही है।

इसके लिए सरकार को चाहिए कि शहरों का सन्तुलित ढंग से विकास करे तथा क्षतिपूर्ति के लिए सड़कों के दोनों ओर वृक्ष लगवाने की व्यवस्था करे तथा स्थान-स्थान पर पार्क बनवाए।

वनों से हमें लकड़ी के साथ-साथ अनेक महत्त्वपूर्ण सहायक उपजों की प्राप्ति होती है, जिनका उपयोग देश के अनेक उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है।

इन सहायक उपजों में लाख, चमड़ा, गोंद, शहद, कत्था, छालें, बाँस एवं बेंत, जड़ी-बूटियाँ, जानवरों के सींग इत्यादि मुख्य है; जिनका उपयोग भारत के विभिन्न उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है।

इनमें कागज उद्योग, दियासलाई उद्योग, चमड़ा उद्योग, फर्नीचर उद्योग, तेल उद्योग (चन्दन, तारपीन एवं केवड़ा आदि) तथा औषधि उद्योग मुख्य हैं।

भारतीय वनों से लगभग 550 प्रकार की ऐसी लकड़ियाँ प्राप्त होती हैं, जो व्यापारिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

इनमें से साल, सागौन, चीड़, देवदार, शीशम आबनूस तथा चन्दन आदि की लकड़ियाँ मुख्य हैं, जिनका उपयोग फर्नीचर, रंग के डिब्बे, स्लीपर जहाज आदि बनाने, माचिस बनाने तथा इमारती लकड़ी के रूप में किया जाता है।

वनों से प्राप्त वस्तुओं का उपयोग करके भारत में अनेक लघु तथा कुटीर उद्योगों की स्थापना हुई है। इनमें से टोकरियाँ एवं बेंत बनाना, रस्सी बाँटना, बीड़ी बाँधना, गोंद एवं शहद एकत्र करना इत्यादि मुख्य हैं।

भारतीय वनों में कुछ ऐसी वनस्पतियाँ तथा जड़ी-बूटियाँ पायी जाती है, जिनसे अनेक प्रकार की औषधियाँ तैयार की जाती हैं।

औषधियों के द्वारा अनेक रोगों का उपचार किया जाता है।

वन, सरकार को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को अर्जित करने में बहुत सहायता प्रदान करते हैं। विभिन्न वन पदार्थों, जैसे : लाख, तारपीन का तेल, चन्दन का तेल एवं उससे बनी कलात्मक वस्तुओं आदि के निर्यात द्वारा सरकार को प्रति वर्ष अनुमानतः लगभग 50 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

जंगलों की अंधाधुंध कटाई से हानि

वनों से लकड़ी प्राप्त करने के लिए देश में इनको निरन्तर काटा जा रहा है, जिससे वन क्षेत्र में कमी होती जा रही है।

इस समस्या को हल करने के लिए ईंधन के लिए खनन-कोयले का उत्पादन बढ़ाया जाना चाहिए तथा नये-नये क्षेत्रों में वन लगाने की व्यवस्था करनी चाहिए।

उपसंहार

वन वर्षा में मदद करते हैं; अतः वनों को वर्षा का संचालक कहा जाता है।

वनों से वर्षा होती है, और वर्षा से वन बढ़ते हैं। इस प्रकार मानसून पर भारतीय कृषि की निर्भरता की दृष्टि से वन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं।

वन वातावरण के तापक्रम, नमी तथा वायु-प्रवाह को नियंत्रित करके जलवायु में समानता बनाये रखते हैं।

वन आँधी-तूफानों हमारी रक्षा करते हैं, गर्म एवं तेज हवाओं को रोककर देश की जलवायु को सम-शीतोष्ण बनाये रखते हैं।

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