'ठहते विश्वास' कहानी में आएं उड़ीसा में हुए बाढ़; का चित्रण बड़ा ही त्रासदीपूर्ण में है।
देबी नदी के किनारे स्थित तथा लगातार वर्षा होने से लक्ष्मी का गाँव प्रायः बाढ़ की चपेट में आ जाता है।
लगातार वर्षा होने से लक्ष्मी को अन्दर से झँकझोर देता है। मनुष्य की आवाज, उसके शब्द, आनन्द, कोलाहल सब रेत में दफन हो गए हैं।
दलेई बाँध टूटने से नदी का पानी सर्वत्र फैल गया है। चारों तरफ चीत्कार सुनाई पड़ती है। लक्ष्मी के मन में अच्छे-बुरे ख्याल आने लगते हैं।
पति की अनुपस्थिति उसे खटकने लगती है। लोग ऊँची जगहों पर शरण पाने के लिए बेतहाशा दौड़ पड़ते हैं।
लक्ष्मी अपने बेटे की प्रतीक्षा में बिछड़ जाती है। किसी तरह अपने बच्चों को लेकर वह दौड़ पड़ती है।
धारा में उसके पैर उखड़ जाते हैं। बरगद की जटा पकड़कर वह किसी तरह पेड़ पर पर चढ़ जाती है।
देखते-देखते बरगद का पेड़ भी डूबने लगता है। लक्ष्मी अपनी साड़ी के आधे भाग को कमर में बाँध लेती है।
वह कुछ ही समय में अचेत हो जाती है। टीले पर चढ़े हुए लोग अपने परिचितों को ढूँढ़ रहे थे।
कोई किसी की सहायता नहीं कर सकता था। लाश की तरह एक जगह टिकी हुई लक्ष्मी को सहसा होश आ जाता है।
वह अपने छोटे बेटे को ढूँढ़ने लगती है। हिम्मत हार चुकी वह अनायास पेड़ की शाखा-प्रशाखा की जोड़ में फँसे एक छोटे बच्चे को उठा लेती है।
वह उसका बेटा नहीं है उसका शरीर फुला हुआ है। फिर भी वह उसे नन्हें से बच्चे को अपने स्तन से लगा लेती है।