अज्ञेय जी की रोज कहानी को इन पंक्तियों में वाह्य प्रकृति के साथ मालती की आंतरिक मनोदशा का साम्य प्रतीक रूप में दिखाया गया है। गर्मी से सूखकर मटमैले हुए चीड़ के वृक्ष मालती के सूखे जीवन को प्रतीकित करते हैं। लेखक ने मालती के जीवन को अशांत अनुभव किया है लेकिन उसमें न तो करूणा है और न उद्वेग । इसलिए उसमें एक दुखपूर्ण कोमलता का रूप अनुभव होता है। यहाँ मालती के जीवन और चीड़ के वृक्ष की समानता द्वारा मालती के अशांत जीवन को सूचित करना लेखक का लक्ष्य है।