प्रस्तुत पंक्तियाँ, 'अर्द्धनारीश्वर' शीर्षक निबंध से ली गई हैं। इसके लेखक रामधारी सिंह दिनकर हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में निबन्धकार यह कहना चाहता है कि जिस तरह वृक्ष के अधीन उसकी लताएँ फलती-फूलती हैं, उसी तरह पत्नी भी पुरुषों के अधीन है। वह पुरुष के पराधीन है। इसी कारण नारी का अस्तित्व संकट में पड़ गया है।
लता का स्वभाव है कि वह किसी पेड़ के बिना विकसित नहीं हो पाती। पेड़ पर चढ़कर वह मनमाने ढंग से फैलने लगती है। यही स्थिति पत्नी की है। अपने विकास करने के लिए वह पति का सहारा चाहती है। उसके बिना अपने को असहाय समझती है। यहाँ लेखक ने पत्नियों के पति आश्रित स्वभाव की ओर संकेत किया है।