प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह दिनकर की अर्द्धनारीश्वर निबन्ध की हैं। चंदा दिनकर का कहना है कि जीवन की पूर्णता कठोरता, कोमलता, ताप- शीतलता आदि के समन्वय में है। यदि पुरुष में नारी भाव न हो तो वह केवल कठोर और अशांति मचानेवाला होता है। अतः अधूरा होता है। स्त्री का थोड़ा गुण आने पर उसमें प्रेम, दया, कोमलता, शीतलता आती है। इसलिए नारीत्व विहीन पुरुष अधूरा माना जाता है।