पुनर्जागरण कालीन की एक महत्वपूर्ण विशेषता धर्म निरपेक्षता थी। इसके पूर्व साहित्य की विषय-वस्तु धर्म ही था और प्रत्येक साहित्यकार की रचना में धर्म का पुट अनिवार्यतः रहता था।
परन्तु पुनर्जागरण युग में साहित्यकारों में नयी चेतना आयी। फलस्वरूप पुनर्जागरणकालीन साहित्यकार धर्मीनरपेक्ष साहित्यकार की रचना करने लगे।
पुनर्जागरण कालीन साहित्य की दूसरी विशेषता थी-राष्ट्रीय भाषाओं का विकास। राष्ट्रीय भाषाओं में साहित्य की रचना होने से इतालवी, फ्रांसीसी, स्पेनी, जर्मन तथा अंग्रेजी भाषाओं के विकास में भी सहायता मिली।
पुनर्जागरण युगीन साहित्य की तीसरी विशेषता थी- व्यक्तिवाद। साहित्यकार चर्च के प्रभाव से मुक्त होने के बाद अपनी रचनाओं में साहित्य को सर्वोपरी स्थान देने लगे। चतुर्थतः, पुनर्जागरण कालीन साहित्य में राष्ट्रीय भावना की भरपुर झलक मिलती है।
इन्हीं राष्ट्रीय भावनाओं से प्रेरित होकर लैटिन और ग्रीक के स्थान पर स्थानीय भाषाओं को मान्यता दी गई। आलोचना पुनर्जागरण कालीन साहित्य की पांचवीं विशेषता थीं। साहित्य में आलोचना की परम्परा सोलहवीं शताब्दी में ही प्रारम्भ हुई। फलतः फ्रांस तथा इंगलैंड में आलोचनात्मक साहित्य की रचना व्यापक पैमाने पर हुई।
पुनर्जागरण कालीन साहित्य में नाटक तथा काव्य को भी उचित स्थान दिया गया। अंततः पुनर्जागरण कालीन साहित्य की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि अपनी रचनाओं द्वारा साहित्यकारों ने व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के बीच सम्बन्ध स्थापित प्रयास किया।