जैव-आवर्द्धन का सर्वाधिक विषाक्त संकेंद्रण द्वितीयक उपभोक्ताओं (Secondary Consumer) में होगा।
जैव-आवर्द्धन का अर्थ है उत्तरोत्तर पोषण स्तरों पर विषाक्त संकेंद्रण में वृद्धि।
जैव-आवर्धन का सर्वाधिक विषाक्त संकेंद्रण द्वितीयक उपभोक्ता में इसलिये होता है क्योंकि किसी जीवधारी द्वारा संचित विषाक्त पदार्थ का उपापचय नहीं होता या बाहर नहीं निष्कासित होता। अतः यह अगले पोषण स्तर पर पहुँच जाता है। इसलिये सर्वाधिक विषाक्त संकेंद्रण द्वितीयक उपभोक्ताओं में होगा।
- जो अपना भोजन स्वयं नहीं बनाते हैं, दूसरों पर निर्भर रहते है, उपभोक्ता कहलाते हैं। सभी जीव उपभोक्ता होते हैं।
- प्राथमिक उपभोक्ता → सभी शाकाहरी जंतु प्राथमिक उपभोक्ता के अंतर्गत आते हैं। जैसे— गाय, भैंस, बकरी, हिरण, चूहा, बंदर इत्यादि।
- द्वितीयक उपभोक्ता → प्राथमिक उपभोक्ता पर निर्भर जंतु द्वितीयक उपभोक्ता के अंतर्गत आते हैं। जैसे – मेढक, मछली, कीट पतंगो को खाने वाले पक्षी एवं जन्तु, छिपकली इत्यादि।
- तृतीयक उपभोक्ता → द्वितीयक उपभोक्ता पर निर्भर जंतु तृतीयक उपभोक्ता के अंतर्गत आते हैं। जैसे–शेर, बाघ इत्यादि।
- जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं, दूसरों पर निर्भर नहीं रहते हैं, उत्पादक कहलाते हैं। सभी हरे पेड़-पौधे उत्पादक हैं।