चोल शिलालेख में उल्लेखित गुरुकुल के अनुरक्षण हेतु प्रदान की गई भूमि को शालाभोग (Shalabhog) कहा जाता था।
चोल काल में भूमि एवं उससे संबंधित विषय—
- वेल्लनवगाई → गैर ब्राम्हण किसान स्वामी की भूमि।
- ब्रम्हदेय → ब्राम्हणों को उपहार में दी गई भूमि।
- शालाभोग → किसी विद्यालय के रख-रखाव की भूमि।
- पल्लिच्चंदम → जैन संस्थानों को दान दी गई भूमि।
- चोल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार राजेन्द्र प्रथम के शासन काल में था।
- स्थानीय स्वशासन चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता थी। चोल काल में भूमिकर उपज का 1/3 भाग था।
- चोल काल में कंलजु सोने के सिक्के थे।
- चोलों एवं पश्चिमी चालुक्य के बीच शांति स्थापित करने में गोवा के कदम्ब शासक जयकेस प्रथम ने मध्यस्थ की भूमिका निभायी थी।