नहीं, संघवाद भारतीय संविधान के प्रस्तावना में नहीं है।
संविधान की प्रस्तावना को संविधान की कुंजी कहा जाता है। प्रस्तावना संविधान का आरंभिक अंक होते हुए भी कानूनी तौर पर उसका भाग नहीं माना जाता है।
42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा इसमें समाजवादी, पंथ निरपेक्ष और अखण्डता शब्द जोड़े गये। भारत के संविधान की प्रस्तावना में तीन प्रकार का न्याय (सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक), पाँच प्रकार की स्वतंत्रता ( विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म एवं उपासना) एवं दो प्रकार की समानता ( प्रतिष्ठा एवं अवसर ) का उल्लेख किया गया है।
प्रस्तावना के अनुसार संविधान के अधीन समस्त शक्तियों का केन्द्रबिन्दु अथवा स्रोत भारत के लोग हैं।
प्रस्तावना में लिखित शब्द यथा – "हम भारत के लोग इस संविधान को " अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं ।
केशवानन्द भारती वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने मूल ढाँचा का सिद्धांत दिया तथा प्रस्तावना को संविधान का मूल ढाँचा माना।