सिद्धान्त(Theory) —
भौतिक निकायों के किसी व्यवहार अथवा किसी प्राकृतिक घटना की व्याख्या करने हेतु प्रकृति के कुछ ज्ञात नियमों के पदों में प्रयोगों द्वारा सत्यापित परिकल्पना को सिद्धान्त(Theory) कहते हैं।
किसी भी सिद्धान्त को तभी मान्यता मिलती है जबकि वह अधिकाधिक सम्बन्धित प्रेक्षणों की व्याख्या करने में सक्षम होता है। यदि कोई नये प्रेक्षण सम्बन्धित प्रचलित सिद्धान्त से मेल नहीं खाते हों, अथवा किसी घटना की व्याख्या सम्बन्धित प्रचलित सिद्धान्त के आधार पर नहीं की जा सकती हो, तो फिर वह प्रचलित सिद्धान्त पूर्णतः मान्य नहीं रहता तथा उसमें संशोधन आवश्यक हो जाता है । इस प्रकार नई अवधारणाएँ अस्तित्व में आती हैं और नये सिद्धान्तों का प्रतिपादन होता है। उदाहरण के लिए -
(i) टॉमसन का परमाणु मॉडल α (alpha)-कणों के बड़े कोणों पर प्रकीर्णन की व्याख्या नहीं कर सका । अतः इसकी व्याख्या के लिए रदरफोर्ड ने नया परमाणु मॉडल दिया; जिसमें परमाणु का समस्त धनावेश नाभिक में केन्द्रित माना गया तथा इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर सभी सम्भव त्रिज्याओं के वृत्तों में घूमते थे। किन्तु परमाणु का यह मॉडल परमाणु के स्थायित्व एवं हाइड्रोजन-परमाणु के रेखिल वर्णक्रम की व्याख्या करने में असमर्थ सिद्ध हुआ। अत: नील बोर ने रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के दोषों को प्लांक के क्वांटम सिद्धान्त की सहायता से दूर किया। बाद में बोर का परमाणु मॉडल जीमान प्रभाव (Zeeman effect) की व्याख्या करने में असमर्थ सिद्ध हुआ। अतः समरफील्ड ने इस प्रभाव की व्याख्या करने हेतु अपने नये परमाणु मॉडल में मुख्य स्थायी ऊर्जा-स्तरों के उप-ऊर्जा स्तरों में विभाजन और अन्तर्वेधी कक्षाओं (penetrating orbits) की अवधारणा दी।
(ii) हाइगेन (Huygen) के तरंग-सिद्धान्त के अनुसार, प्रकाश की तरंगें यांत्रिक अनुदैर्घ्य होती हैं। लेकिन इस आधार पर प्रकाश के ध्रुवण की व्याख्या नहीं की जा सकी । अतः फ्रेनेल (Frennel) ने प्रकाश को यांत्रिक अनुप्रस्थ तरंगें माना । चूँकि यांत्रिक तरंगों के संचरण के लिए माध्यम आवश्यक है तथा प्रकाश निर्वात् में भी संचरित होता है, अतः मैक्सवैल के विद्युत चुम्बकीय तरंगों के सिद्धान्त के प्रतिपादन तथा हर्ट्ज द्वारा इसके प्रायोगिक सत्यापन के बाद प्रकाश के यांत्रिक तरंग-सिद्धान्त को तिलांजलि दे दी गई।