प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ मोहन राकेश लिखित एकांकी 'सिपाही की माँ' से ली गई हैं। यह उक्ति उस बर्मी लड़की की है जो युद्ध से त्रस्त होकर जान बचाकर भाग आयी है। मुन्नी के पूछने पर कि तुम जिस रास्ते से आई हो, उस रास्ते से फौजी नहीं भागकर आ सकते ? वह लड़की कहती है कि नहीं, फौजी वहाँ लड़ने के लिए हैं, वे नहीं भाग सकते। जो फौजी छोड़कर भागता है, उसे गोली मार दी जाती है।
प्रस्तुत उद्धरण में लेखक ने स्पष्ट किया है कि युद्ध भयावह है। सेना युद्ध में लड़ती है भाग नहीं सकती। वह सेना के नियमों में बंधा हुआ है। भागने पर सैनिकों को भगोड़ा घोषित कर उसे गोलियों से भून दिया जाता है।