प्रस्तुत पंक्ति अर्धनारीश्वर शीर्षक निबंध से ली गई है। इसके रचयिता रामधारी सिंह ‘दिनकर' हैं। दिनकर जी का कहना है कि नर-नारी दोनों पूर्ण रूप से समान हैं। समाज के संतुलन के लिए स्त्री-पुरूष का समान सबल होना आवश्यक है। दिनकर जी के अनुसार नर और नारी एक ही द्रव्य से निर्मित दो मूर्तियाँ हैं। प्रत्येक नर के भीतर एक नारी और प्रत्येक नारी के भीतर एक नर छिपा है।