आवेश की न्यूनतम सम्भव मात्रा को मूल आवेश (Elementary Of Fundamental Charge) कहते हैं।
प्रकृति में न्यूनतम आवेश एक इलेक्ट्रॉन का आवेश है। प्रोटोन पर भी इतना ही किन्तु विपरीत प्रकृति का आवेश होता है। आवेश की इस न्यूनतम मात्रा कों e से प्रदर्शित करते हैं। इससे कम आवेश का कोई भी कण ज्ञात नहीं है।
किसी भी आवेशित कण (जैसे α-कण, आयन आदि) अथवा आवेशित वस्तु (जैसे कोई आवेशित बूंद अथवा गोली) में आवेश की मात्रा सदैव e के पूर्ण गुणज के रूप में (e, 2e, 3e, 4e,........) ही पायी जाती है, न कि e के भिन्नात्मक गुणज के रूप (जैसे 0.6e, 1.5e, 3.7e आदि) में।
इससे स्पष्ट है, कि विद्युत आवेश को अनिश्चित रूप से विभाजित नहीं किया जा सकता। आवेश के इस गुण को आवेश का कवाण्टमीकरण (Quantisation Of Charge) अथवा आवेश की परमाणुकता (Atomicity Of Charge) कहते हैं।
आवेश की छोटी-से-छोटी इकाई e है, जिसका मान e =1.6x10-19 कूलॉम होता है। यही मूल आवेश है।
इलेक्ट्रॉनों की पूर्ण संख्या का ही आदान-प्रदान सम्भव है। यदि किसी वस्तु में आवेश की मात्रा q हो, तब
q = +,-(ne)
जहाँ n पूर्णांक है!
मूल आवेश का मान इतना छोटा है, कि दैनिक जीवन में हम आवेश के क्वाण्टमीकरण का अनुभव नहीं करते।
100 वाट के एक साधारण बल्ब के तन्तु में ही प्रति सेकण्ड लगभग 3 x 1018 इलेक्ट्रॉन (मूल आवेश) एक सिरे से प्रवेश करते हैं, तथा इतने ही अन्य इलेक्ट्रॉन दूसरे सिरे से बाहर निकलते हैं।