स्वतंत्र न्यायपालिका क्या होती है? Swatantra Nyaypalika Kya Hoti Hai?
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स्वतंत्र न्यायपालिका क्या होती है? Swatantra Nyaypalika Kya Hoti Hai?

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कल्पना कीजिए कि एक ताकतवर नेता ने आपके परिवार की ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया है। आप एक ऐसी व्यवस्था में रहते हैं जहाँ नेता किसी न्यायाधीश को उसके पद से हटा सकते हैं या उसका तबादला कर सकते हैं। जब आप इस मामले को अदालत में ले जाते हैं तो न्यायाधीश भी नेता की हिमायत करता दिखाई देता है।

नेताओं का न्यायाधीश पर जो नियंत्रण रहता है उसकी वज़ह से न्यायाधीश स्वतंत्र रूप से फ़ैसले नहीं ले पाते । स्वतंत्रता का यह अभाव न्यायाधीश को इस बात के लिए मजबूर कर देगा कि वह हमेशा नेता के ही पक्ष में फ़ैसला सुनाए । 

हम ऐसे बहुत सारे किस्से जानते हैं जहाँ अमीर और ताकतवर लोगों ने न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास किया है। लेकिन भारतीय संविधान इस तरह की दखलअंदाज़ी को स्वीकार नहीं करता। इसीलिए हमारे संविधान में न्यायपालिका को पूरी तरह स्वतंत्र रखा गया है।

इस स्वतंत्रता का एक पहलू है शक्तियों का बँटवारा।  यह हमारे संविधान का एक बुनियादी पहलू है। इसका मतलब यह है कि विधायिका और कार्यपालिका जैसी सरकार की अन्य शाखाएँ न्यायपालिका के काम में दखल नहीं दे सकतीं। अदालतें सरकार के अधीन नहीं हैं। न ही वे सरकार की ओर से काम करती हैं।

शक्तियों के इस बँटवारे को दुरुस्त रखने के लिए यह भी महत्त्वपूर्ण है कि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों नियुक्ति में सरकार की अन्य शाखाओं का कोई दखल न हो। इसीलिए एक बार नियुक्त हो जाने के बाद किसी न्यायाधीश को हटाना बहुत मुश्किल होता है। 

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