राजनीतिक समाजशास्त्र की व्याख्या करते हुए लिप्सेट और बेन्डिक्स ने इसकी दो विशेषताओं की चर्चा की है। उनके अनुसार प्रथम तो यह राजनीतिक और सामाजिक संस्थाओं के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है और दूसरे केवल उस ही राजनीतिक तथ्य के रूप में समझने का प्रयास होना चाहिए जिसका सम्बन्ध सामाजिक तथ्यों से हो सके। मुख्योपाध्याय ने उक्त व्याख्या के आधार पर राजनीतिक समाजशास्त्र की परिभाषा देहे हुए बतलाया कि राजनीतिक समाजशासत्र वह विषय है जो उन राजनीतिक घटनाओं का अध्ययन करता है जो अनिवार्यतः सामाजिकि सम्बन्धों से जुड़ी है। -
राजनीतिक समाजशास्त्र की परिभाषा के साथ ही यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि यह राजनीतिक विज्ञान और समाजशास्त्र से अलग है। -
पश्चिमी देशों के विद्वानों में राजनीतिक समाजशास्त्र के सन्दर्भ में एक विवाद की चर्चा लम्बे समय से चल रही है कि क्या यह राजनीतिक के समाजशास्त्र से भी अलग है? इस प्रश्न के उत्तर के लिए दोनों की चर्चा करना आवश्यक है।
'राजनीतिक समाजशास्त्र' का अर्थ है, राजनीति का समजाशास्त्रीय निर्णायकत्व। जब किसी अध्ययन में राजनीतिक तथ्यों को निर्भर चल (Dependable Variable) तथा समाजशास्त्रीय तथ्यों को व्याख्यात्मकं चल (Explanatory Variable) के रूप में रखा जाता है तब ऐसे अध्यन को राजनीति के समाजशास्त्र के रूपम परिभाषित किया जा सकता है।
दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते है। 'राजनीति का समाजशास्त्र' राजनीति तथ्यों को समजाशास्त्रीय दृष्टिकोण के आधार पर देखने का सुझाव देता है।
जो लोग समाजशास्त्र को एक सामान्य विज्ञान (General science) के रूप में स्वीकार करते हैं उनका कथन है कि 'राजनीति का समाजशास्त्र' समाजशास्त्र की ही एक विषय-वस्तु है।
उनके अनुसार जिस प्रकार समाजशास्त्र, समाज के विभिन्न क्षेत्रों, संस्कृति, साहित्य तथा धर्म आदि को निर्भर चल (Dependable Variable) के रूप में स्वीकार करता है उसी प्रकार वह राजनीतिक घटनाओं को भी निर्भर चल के रूप में स्वीकार करते हुए उनका अध्ययन करता है। इस प्रकार जो अन्तर समाजशास्त्र और राजनीतिक समाजशास्त्र में है।
लगभग उसी प्रकार समान अन्तर 'राजनीति' का समाजशास्त्र और राजनीतिक समाजशास्त्र में है।
राजनीतिक समाजशास्त्र का एक स्वतंत्र उपागम के रूप में उदय के कारण समाजशास्त्र के जन्मदाता श्री काम्टे ने 19वीं शताब्दी में समाजशास्त्र के अध्ययन को विभिन्न शास्त्रों में बाँटने की बजाय केवल एक ही शास्त्र समाजशास्त्र के अन्तर्गत रखने का सुझाव दिया था। परन्तु 19वीं शताब्दी के अन्त तक तथा 20वीं शबतदी के आरम्भ में विभिन्न सामाजिक शास्त्रों के अस्तित्व में आने से इनका सम्बन्ध अन्य शास्त्रों से हुआ।
आधुनिक समय में अनेक राजनीतिशास्त्रियों ने राजनीतिक प्रक्रियाओं की वास्तविकता को समझने के लिए उन समाजशास्त्रीय सिद्धांतों का प्रयोग किया है जो राजनीतिक व्यवहारों एवं घटनाओं पर प्रकाश डालती है। मैकाइवर, डेविड ईस्टन और आमण्ड जैसे लेखकों ने इस तथ्य को मान्यता प्रदान की है कि समाज विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे पर्याप्त आँकड़े उपलब्ध हो गये हैं जिनके आधार पर राजनीतिक व्यवहार के कतिपय नियमों का निर्धारण किया जा सकता है। कैटलिन ने कहा है कि राजनीतिशास्त्र में संगठित समाज का अध्ययन किया जाता है इसलिए समाजशास्त्र को उससे अलग नहीं किया जा सकता।.
राजनीतिक समाजशास्त्र
1. राज्य और समाज में घनिष्ठता : आज अध्ययन के क्रम में राज्य और समाज में घनिष्ठता को देखा जा रहा है जबकि इसके पूर्व राज्य और समाज में अंतर के दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता रहा है।
इस संदर्भ में समाजशास्त्रियों की मान्यता है कि राज्य अनेक राजनीतिक संस्थाओं में से एक है तथा राजनीतिक संस्थाएँ इन्हीं सामाजिक संस्थाओं की एक कड़ी है।
2. राजनीतिक विज्ञान के पम्परागत उपागमों के प्रति अंसतोष का होना : राजनीतिक समाजशास्त्रियों की मान्यता है कि राजनीतिक संस्थाएँ व्यक्तियों से चालित होती हैं और व्यक्तियों के व्यवहार के माध्यम से ही राजनीतिक जीवन को समझा जा सकता है।
अतः यह व्यक्तियों के व्यवहार के अध्ययन को हो महत्व देता है जबकि राजनीतिक विज्ञान के अध्यय में परम्परागत उपागम राजनीतिक संस्थाओं अर्थात् राज्य सरकार आदि के अध्ययन पर जोर देते हैं।
इससे राजनीतिक प्रक्रियाओं, स्थितियों एवं निर्णय - निर्माण प्रक्रिया के बारे में कुछ पता नहीं चलता। इसी कारण रजानीतिक समाजशासत्र काअभ्यतुदय हुआ।