लोकतांत्रिक (Democracy) शासन व्यवस्था का सबसे बड़ा गुण है कि इसमें विविधताओं में सामंजस्य स्थापित करने की अदभुत क्षमता होती है।
लोकतांत्रिक समाज में विभिन्न समूहों और वर्गों के लोग निवास करते हैं और उनमें टकराव होता रहता है।
इन टकरावों में सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता ही किसी शासन पद्धति की सफलता का द्योतक है। जब इस आधार पर हम लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का मूल्यांकन करते हैं तब उसमें यह क्षमता दिखाई पड़ती है।
लोकतंत्र के अंतर्गत सभी तरह के लोग सद्भावपूर्ण एवं शांतिमय जीवन व्यतीत करते हैं। भेदभाव के बावजूद में मिल-जुलकर रहते हैं।
यदि टकराव होता भी है तो लोकतांत्रिक व्यवस्था उसे दूर करने में समर्थ हो जाती है। बेल्जियम की लोकतांत्रिक व्यवस्था में विभिन्न भाषा-भाषियों के टकराव को दूर करने के उद्देश्य से संविधान में प्रावधान किए गए हैं।
भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी विभिन्न धर्म, जाति तथा संप्रदाय के लोगों के लिए ऐसे कदम उठाए गए हैं जिससे लोग सद्भावपूर्ण सामाजिक जीवन व्यतीत कर सकें।
इसके लिए आवश्यक है कि लोकतंत्र कुछ सावधानियाँ भी बरते। पहली सावधानी है कि लोकतंत्र को अल्पसंख्यकों के हितों का भी ध्यान रखना चाहिए तथा उनके कल्याण के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।
दूसरी सावधानी यह बरतनी चाहिए कि वंश, धर्म, धन, जन्म, संप्रदाय के आधार पर नागरिकों को सत्ता में भागीदारी से वंचित नहीं किया जाए।
समाज (Society) में समरसता लाना लोकतंत्र का उत्तरदायित्व है और इस उत्तरदायित्व से वंचित रहने पर लोकतंत्र का परिणाम कभी सुखद नहीं हो सकता।