एक नई व्यवस्था दक्षिण और पश्चिम भारत में रैयतवारी व्यवस्था (Raiyatwari Vyavastha)के नाम से शुरू की गई। इसमें किसानों (Farmers) के साथ सीधा करार किया गया।
इन इलाकों में परंपरागत रूप से जमींदार नहीं होते थे; इसलिए कंपनी, सरकार से किसी नए व्यक्ति को जमींदार बना कर स्थापित करने की जगह सीधा किसानों से ही संबंध स्थापित किया।
इस व्यवस्था में लगान उपज (Yield) के आधार पर तय हुआ। पहले जमीन की गुणवत्ता (Quality of Land) देखी गई, फिर पिछले कुछ वर्षों की उपज का औसत निकाला गया।
उसमें किसानों की खेती पर होने वाले खर्च को काट कर जो बचता था, उसका 50 प्रतिशत लगान के रूप में तय कर दिया गया।
मगर इसे स्थायी नहीं बनाया गया। प्रत्येक 30 वर्ष बाद लगान की राशि में बदलाव किया जाना तय किया गया। इस व्यवस्था में किसानों को जमीन का मालिक (Owner of Land) माना गया था।